भारत में सबके अपने-अपने राम है। गांधी के राम अलग हैं, लोहिया के राम अलग, बाल्मीकि और तुलसी के राम में भी फर्क है। कबीर ने राम को जाना, तुलसी ने माना, निराला ने बखाना। राम एक है, पर राम के बारे में द्दष्टि सबकी अलग है। त्रेता युग के श्रीराम त्याग, शुचिता, मर्यादा, संबंधों और इन संबंधों से ऊपर मानवीय आदर्शों की वे प्रतिमूर्ति है, जिनका दृष्टांत आधुनिक युग में भी अनुकरण करने के लिए दिया जाता है।
ऐसे ही अतीत की एक घटना अक्सर मुझे याद आती है। जितना मैं राम को पढ़ पाया उस आधार पर, राम रावण युद्ध अनवरत जारी था। एक दिन युद्ध भूमि में राम का रण कौशल क्षीण हो रहा था। वो जो भी बाण चलाते वह अपने लक्ष्य तक नहीं पहुँच पाता। भगवान राम को लगा कि अब पराजित हो जाऊंगा।
तब भगवान राम युद्ध भूमि में दिव्य दृष्टि से देखे की वास्तव में आज क्या कारण है कि आज युद्ध में मेरा प्रभाव क्षीण हो रहा है। तो उन्होंने देखा कि ओह आज तो साक्षात मां दुर्गा (शक्ति) रावण के रथ पर आरूढ़ है। तब राम किसी भी तरह युद्ध की आचार संहिता अर्थात् सूर्यास्त तक इंतजार किए।
युद्ध से लौटकर जब उस दिन राम रात्रि विश्राम के समय अपने सेना नायकों के साथ शिला पट्टा पर बैठे थे तो पहली बार उनके नेत्र से आंसू गिरे। इस घटना से आहत होकर जामवंत ने पूछा प्रभु क्या बात है आज आपके नेत्र से आँसू? इस पर राम ने मात्र इतना ही बोला कि अब ये युद्ध मैं जीत नहीं पाऊंगा।
भगवान राम ने कहा कि जब पूरी सृष्टि जानती है कि मैं सत्य की रक्षा के लिए युद्धरत हूँ तो फिर शक्ति को मेरे साथ होना चाहिए। आज दुर्गा अन्यायी के साथ है। “जिधर अन्याय शक्ति उधर” यही मेरे आत्मीय कष्ट का कारण है। भगवान राम ने देवी की स्तुति की और उन्हें अंततः त्याग और समर्पण से अपने पक्ष में कर लिया।
कालांतर में यह कहानी फिर से दोहराई जा रही है इस बार भी रावण के साथ शक्ति है। रावण ने भगवान राम से कहा कि मैं तुम्हे बंद कर दूंगा। राम घबरा गए है कि मैं तो हर मनुष्य में हूं, यह मुझे दीवारों के बीच बंद करने की साजिश रच रहा है।
भगवान राम फिर से उदास है फिर से आंखें बह रही हैं। युद्ध में राम एक बार फिर पराजित होते दिख रहे हैं लेकिन यकीन मानिए भगवान राम ही अंततः जीतेंगे रावण शक्तिहीन होगा।
जय श्री राम 🙏🏻
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