Friday, 5 January 2024

मैं अभी सतह पर हूँ



तुम कहते हो के पढ़ लेते हो चेहरा मेरा, कितना हसीन झूठ है, मग़र कहते रहो। जैसे तुम्हें भ्रम है वैसे मुझे भी हमेशा भ्रम रहा है कि मैं चेहरे पढ़ लेता हूँ। लोगों की आँखों में देख कर उनके एहसास जान लेता हूँ, उनके दुखों को टटोल कर पता कर लेता हूँ कि अभी पके हैं या नहीं। 


लेकिन यह भ्रम टूट रहा है, मैं अभी सतह पर हूँ। लोगों के चेहरों पर कई परतें हैं। पहले एक हँसी का मुखौटा है, फिर एक मेकअप की तह है, मेकअप के नीचे उसका फाउंडेशन है जो झूठ को पकड़ कर रखता है। फाउंडेशन के नीचे त्वचा है, त्वचा के नीचे मौसम भरे हुए हैं - झूमता हुआ सावन है, सिसकता हुआ पतझड़ है, गीली सी बारिशें हैं और इन मौसमों से गुज़रते हुए रिश्ते हैं, उम्मीदें हैं, अपेक्षायें हैं, तोड़े हुए वायदे हैं। इन सबके बीच जहाँ तहाँ सुख और दुःख के फिंगर प्रिंट्स हैं, ये प्रमाण एक दूसरे से उलझे हुए हैं, गुँथे हुए हैं। इनको अलग करना मेरे उँगलियों के बस की बात नहीं है। 

मैं इन सब परतों के नीचे जाकर सच्चाई तलाश करूँ तो शायद ख़ुद दब जाऊँगा एहसासों के मलबे में। मैंने तय किया है कि मैं अब सतह की लकीरों को छूकर बस अपने मन की बात कह दूँगा। बस इतना कह दूँगा कि हम सब मुखौटे हैं, कह दूँगा कि जो तुम्हारे साथ हुआ है वह किसी और के साथ भी हुआ है, कह दूँगा कि सब सवालों के जवाब नहीं मिलेंगे, कह दूँगा कि जीवन यूँ ही चलता रहेगा। और जो यह सब नहीं कह पाया तो लिखूँगा कविताएँ जो सोख ली जाएँगी इन सारी परतों में और मेरे नहीं होने के बाद भी साथ चलेगी इन चेहरों के, चेहरे जो कह नहीं पाते सच्चाई, चेहरे जो बुतों में जान नहीं डालते। चेहरे जो मुझसे कुछ ख़ास अलग नहीं हैं। इस जहां में दोस्त रोता वही है जिसने सच्चे रिश्ते को महसूस किया हो, वरना मतलब का रिश्ता रखने वालों की आंखों में न शर्म होती है और न पानी। 


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