आज के दौर में जो जितना बड़ा जहरीला, उसको उतना बड़ा पद, उतना अधिक सम्मान, उतना ही अधिक लाभ। यह न्यू इंडिया का अमृतकाल है। इसे समाजसेवी और बुद्धिजीवी नहीं चाहिए। इसे दंगाई, लुटेरे और डकैत चाहिए। आपको अमृतकाल मुबारक ……
“नौकरी में ओहदे की ओर ध्यान मत देना,यह तो पीर की मजार है।निगाह चढ़ावे और चादर पर रखनी चाहिए। ऐसा काम ढूंढना जहां कुछ ऊपरी आय हो। मासिक वेतन तो पूर्णमासी का चाँद है, जो एक दिन दिखाई देता है और घटते-घटते लुप्त हो जाता है। ऊपरी आय बहता हुआ स्त्रोत है, जिससे सदैव प्यास बुझती है। वेतन मनुष्य देता है, इसी लिए उसमें वृद्धि नहीं होती। ऊपरी आमदनी ईश्वर देता है, इसी से उसकी बरकत होती है, तुम स्वयं विद्वान हो, तुम्हें क्या समझाऊं।”
उक्त पंक्तियां कितनी अधिक प्रासंगिक है कहने की जरूरत नहीं। ये प्रेमचंद के साहित्य का एक अंश है जो 'नमक का दारोगा' के एक संवाद में कहा गया।
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