Friday, 19 November 2021

संगठित और संकल्पित किसानों ने दिखाया कि कारपोरेट और सत्ता के षड्यंत्रों से कैसे लड़ा जाता है।


आंदोलन में अगर चरित्र बल हो और आंदोलनकारियों को धैर्य का साथ हो तो शक्तिशाली सरकारें भी उनके समक्ष घुटने टेक सकती हैं। किसान बिल की वापसी की प्रधानमंत्री की घोषणा ने इसे एक बार फिर से साबित किया है।


अपने कदम पीछे खींचने के इस फैसले तक पहुंचना सरकार के लिये आसान नहीं रहा होगा। सब जानते हैं कि कृषि क्षेत्र में तथाकथित 'सुधार' के लिये सरकार पर 'कारपोरेट वर्ल्ड' का कितना दबाव था। दुनिया मुट्ठी में कर लेने के इसी अति आत्मविश्वास का नतीजा था कि एक बड़े कारपोरेट घरानो द्वारा कृषि कानूनों की औपचारिक घोषणा के पहले ही बड़े पैमाने पर अन्न संग्रहण की तैयारियां की जाने लगी थीं। आनन-फानन में तैयार किये गए इन विशालकाय अनाज गोदामों के न जाने कितने विजुअल्स विभिन्न न्यूज चैनलों पर आ चुके थे जो इस तथ्य की तस्दीक करते थे कि देश की कृषि संरचना पर काबिज होने के लिये बड़े कारपोरेट घराने कितने आतुर हैं।

दरअसल, किसानों के आंदोलन ने जिस द्वंद्व की शुरुआत की थी उसमें प्रत्यक्षतः तो सामने सरकार थी लेकिन परोक्ष में कारपोरेट शक्तियां भी थीं। इस मायने में, कृषि बिल की वापसी को हम हाल के वर्षों में हावी होती गई कारपोरेट संस्कृति की एक बड़ी पराजय के रूप में भी देख सकते हैं।

यह बाजार की शक्तियों की बेलगाम चाहतों पर संगठित प्रतिरोध की विजय का भी क्षण है जिसके दूरगामी प्रभाव अवश्यम्भावी हैं, क्योंकि यह एक नजीर है उन श्रमिक संगठनों के लिये जो प्रतिरोध की भाषा तो बोलते हैं लेकिन किसानों की तरह कारपोरेट की मंशा के सामने चट्टान की तरह अड़ने का साहस और धैर्य नहीं दिखा पा रहे।

न जाने कितने आरोप लगाए गए कि सड़कों पर डेरा जमाए इन किसानों को विदेशी फंडिंग हो रही है, कि इनमें खालिस्तानी भी छुपे हुए हैं, कि ये देश के विकास में बाधक बन कर खड़े हो गए हैं और कि ये तो कुछ खास इलाकों के संपन्न किसानों का ऐसा आंदोलन है जिसे देश के अधिसंख्य किसानों का समर्थन हासिल नहीं है।आंदोलन को जनता की नजरों से गिराने की कितनी कोशिशें हुईं, यह भी सब जानते हैं। कितने न्यूज चैनलों ने इसे बदनाम कर देने की जैसे सुपारी ले ली थी, यह भी सबने देखा।

संगठित और संकल्पित किसानों ने उदाहरण प्रस्तुत किया कि नए दौर में नव औपनिवेशिक शक्तियों से अपने हितों की, अपनी भावी पीढ़ियों के भविष्य की रक्षा के लिये कैसे जूझा जाता है। उन्हें पता था कि अगर कारपोरेट और सत्ता के षड्यंत्रों का जोरदार विरोध न किया गया तो उनकी भावी पीढियां आर्थिक रूप से गुलाम हो जाएंगी।

जब किसी आंदोलित समूह के लक्ष्य स्पष्ट हों और उनके साथ उनका सामूहिक चरित्र बल हो तो सत्ता को अपने कदम पीछे खींचने ही पड़ते हैं। खास कर ऐसी लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं में, जिनमें वोटों के खोने का डर किसी भी सत्तासीन राजनीतिक दल के मन में सिहरन पैदा कर देता है।
किसानों ने सरकार के मन मे इस डर को पैदा करने में सफलता हासिल की कि वह अगर आंदोलन के सामने नहीं झुकी तो इसका चुनावी खामियाजा भुगतना पड़ सकता है।

निजीकरण की आंच में सुलग रहे सार्वजनिक क्षेत्र के आंदोलित कर्मचारी सरकार के मन में यह डर पैदा नहीं कर सके। सत्तासीन समूह और उसके पैरोकार कारपोरेट घराने इन कर्मचारियों के पाखंड को समझते हैं। वे जानते हैं कि दिन में सड़कों पर मुर्दाबाद के नारे लगाते ये बाबू लोग शाम के बाद अपने-अपने ड्राइंग रूम्स में सत्ता के प्रपंचों को हवा देने वाले व्हाट्सएप मैसेजेज और न्यूज चैनलों में ही रमेंगे।

    "...विकल्प कहाँ है...?

इस सवाल को दोहराने वालों में अग्रणी रहने वाले ये कर्मचारी अपने आंदोलनों से किसी भी तरह का चुनावी डर सत्तासीन राजनीतिक शक्तियों के मन में नहीं जगा पाए।

आप इसे राजनीतिक फलक पर शहरी मध्य वर्ग के उस चारित्रिक पतन से जोड़ सकते हैं जो उन्हें तो उनके हितों से महरूम कर ही रहा है, उनकी भावी पीढ़ियों की ज़िन्दगियों को दुश्वार करने की भी पृष्ठभूमि तैयार कर रहा है।

कृषि बिल की वापसी की घोषणा करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि वे आंदोलित किसानों को समझा नहीं पाए। वे सही ही कह रहे थे। जब अपने आर्थिक-सामाजिक हितों को लेकर किसी समूह की राजनीतिक दृष्टि साफ होने लगे तो उसे प्रपंचों और प्रचारों से समझा पाना किसी भी सत्तासीन जमात के लिये आसान नहीं होता।
हालांकि, वे सार्वजनिक क्षेत्र के कर्मचारियों को भी समझा नहीं पा रहे कि उनके संस्थानों के निजीकरण के बाद भी उनके हितों की सुरक्षा होगी। लेकिन, तब भी, वे इस समूह की राजनीतिक प्राथमिकताओं के प्रति फिलहाल तो आश्वस्त ही हैं। तभी तो, तमाम विरोध प्रदर्शनों के बावजूद अंधाधुंध निजीकरण का अभियान जोर-शोर से जारी है।

किसान आंदोलन की यह जीत कारपोरेट की सर्वग्रासी प्रवृत्तियों के खिलाफ किसी सामाजिक-आर्थिक समूह की ऐसी ऐतिहासिक उपलब्धि है जो अन्य समूहों को भी प्रेरणा देगी...कि घनघोर अंधेरों में भी अपनी संकल्प शक्ति और साफ राजनीतिक दृष्टि के सहारे उजालों की उम्मीद जगाई जा सकती है। यह शक्तिशाली बाजार के समक्ष उस मनुष्यता की भी जीत है जिसे कमजोर करने की तमाम कोशिशें बीते तीन-चार दशकों से की जाती रही हैं। 

बाजार और मनुष्य के बीच का द्वंद्व आज के दौर की सबसे महत्वपूर्ण परिघटना है। उम्मीद कर सकते हैं कि बाजार की यह पराजय मनुष्यता के विचारों को मजबूती देगी।

Wednesday, 10 November 2021

स्रष्टि का नियम ही बदलाव है !


बदलाव स्रष्टि का एक ऐसा नियम जो रहता है सदा अटल , यह बदलाव आदि जीवन में होता था जब प्राणी था वानर, वानर से मानव का सफ़र भी था एक बदलाव, जब मानव आता है माता के भ्रूण में तब भी होता है उसका बदलाव, वह बदलता है भ्रूण से शिशु के रूप में, शिशु से बालक..


ईश्वर का ही है वरदान यह बदलाव में तो क्यों बचता है, व्यवहार में मानव बदलाव से, कहने को २१वि शताब्दी है, पर नारी पुरुष का भेद, जात-पात का भेद अभी भी बाकी है,....
जब अधिकारों की बाबत कुछ पूछा जाता है तो यह मुख से निकल ही जाता है की, नारी को पुरुषो से निम्न स्थान ईश्वार से ही आया है!

विकासक्रम कि समानता है दोनों में समान, करते है क्यों फिर यह भेदभाव, नैसर्गिक न्याय तो मिलता है दोनों को समान, अपने से अधिकार को देने पर क्यों लग जाता है विराम।

जब बारी आती है उसकी के वह रूढ़िवादिता को छोड़े संकीर्णता से मुख मोड़े, तब वह नया शिगूफा छेड़ता है के यह हमने नही नियम बनाया है यह तो पूर्वजो से आया है। 


प्रश्न यह उठता है की जब ईश्वर ने ही यह सत्य को स्वीकारा है, बदलाव से पूर्णता का अर्थ बतलाया है, तो यह मानव का ही झूठा इरादा है की हमको नही है हक कि यह बदलाव का अधिकार हमने नही पाया है, बदलाव तो निश्चित है यदि सौम्यता से नही तो क्रांति से आया है, तो क्यों न उससे करे मित्रता यदि यह अवसर हमको मिल पाया है!

Monday, 8 November 2021

चीन मुह चिड़ा रहा है, साहिब धर्म की राजनीति पर व्यस्त



पूर्व की तरह एक बार फिर इन दिनों चीन चर्चाओं में हैं। हमारे प्रधानमंत्री जिस मसले पर कुछ समय पहले ही चीन को क्लीन चिट जारी कर चुके हों उस मसले पर अमेरिका के पेंटागन की रिपोर्ट में बताया गया है कि चीन ने भारत के अरुणाचल प्रदेश की सीमा में करीब 4.5 किमी अंदर घुसकर  एक गांव बसा लिया। जिसमें 101 घर नजर आ रहे हैं। उनमें कई दो तीन मंजिला भी हैं । जिससे  देशवासियों की चिंता बढ़ी है । चीन का यह गांव अरुणाचल प्रदेश के ऊपरी सुबनसिरी जिले के गांव त्सारी चू गांव में बसाया गया है। अब किस पर विश्वास करें समझ से परे है। रक्षा मंत्री और प्रधानमंत्री इस विषय पर मौन हैं। अंध भक्त इसे अमेरिका की झूठ बता रहे हैं। आखिरकार चीन पर चुप्पी क्यों, साहिब को जवाब देना चाहिए पर वो तो आजकल धर्म की राजनीति पर व्यस्त नजर आ रहे हैं। अब आप, हम और देश की ज़िम्मेदारी फिर एक बार राम भरोसे नजर आ रही है। 


चीन की मीडिया लगातार कह रही है कि पिछले जून के #गलवान संघर्ष की नई तस्वीरें सोशल मीडिया पर सामने आईं, जिसमें चीनी पीएलए द्वारा आत्मसमर्पण करने वाले भारतीय सैनिकों को दिखाया गया है। भारतीय सैनिकों ने नई-नई सहमति का उल्लंघन किया और चीनी कर्मियों के खिलाफ भड़काऊ हमले शुरू किए, जिससे गंभीर शारीरिक संघर्ष हुए।




असदुद्दीन ओवैसी ने ट्वीट करते हुये लिखा है  “अगर ये तस्वीरें सच हैं तो @PMOIndia के पास जवाब देने के लिए बहुत कुछ है। लद्दाख में हमारे सैनिकों के बलिदान का सम्मान करने के बजाय, मोदी ने चीन के दावे को बरकरार रखा (ना कोई घुस है..) उनका सारा स्वैगर घरेलू दर्शकों के लिए है। कब्जे वाली जमीन की वसूली तो भूल ही जाइए, उन्होंने चीन का नाम तक नहीं लिया है। कमजोर पीएम”

वहीं कांग्रेस ने शनिवार प्रेस कॉन्फ्रेंस पर केंद्रीय कानून मंत्री रिजिजू ने ट्विटर पर दावा किया और लिखा “प्रिय कांग्रेसियों, चीन सीमा मुद्दे पर बोलने से पहले कांग्रेस सरकार के रक्षा मंत्री की बात सुनें। कुछ दुर्भावनापूर्ण मीडिया ने लिखा है कि चीन ने अरुणाचल प्रदेश के भीतर एक गांव बसा लिया है और फिर उस इलाके का थोड़ा-सा जिक्र किया है जहां चीन ने 1959 में कब्जा जमा लिया था। आपका मकसद क्या है?” चोरी और सीनाजोरी वह भी खुल्लमखुल्ला। पी एम भी शान से कहते नहीं थकते, न चीन घुसा था और न घुस आया है। जबकि इस खबर को भारतीय अखबारों ने भी पहले ख़ूब  छापा कि "पिछले साल (2020) से अरुणाचल क्षेत्र में एलएसी के साथ चीनी गतिविधियों में तेज वृद्धि हुई है, मिगीटुन शहर के पास त्सारी नदी पर निर्मित आवासीय आवास और संचार सुविधाओं में वृद्धि हुई है, जिसे उन्नत सड़क संपर्क भी मिला है।" लेकिन चीन को क्लीनचिट दी गई। पत्रकारों और नेताओं को झूठा साबित किया गया। फिर कांग्रेस ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस कर यह बताया है कि चीन अब गलवान घाटी में पांव जमाने के बाद तथा अरुणाचल में गांव बसाने के बाद सिलीगुड़ी कारीडोर के करीब फिर इसी तरह के काम में जुट गया है यह बात आज मीडिया के माध्यम से ईस्टर्न आर्मी कमांड के JOC के हवाले से मिली जिसमें बताया गया कि चीन यहां भी सड़कों का जाल बिछा रहा है। चुंबी वैली में चीन कनैक्टीविटी बढ़ा रहा है। अधोसंरचना कर रहा है, ऑप्टिकल फाइबर का नेटवर्क बिछा रहा है। उनका ये भी कहना है कि ड्रैगन के इरादे नेक नहीं है।

कांग्रेस ने मीडिया को कहा कि इस मुद्दे पर बात करना इसलिये भी जरूरी है क्योंकि यह सामरिक तौर पर महत्वपूर्ण है। चीन के इन हरकतों से सिलिगुड़ी कोरिडोर खतरे में आ गया है. उन्होंने कहा कि याद दिला दें कि पिछले 18 महिनों में चीन ने अलग अलग तरीके से घुसपैठ किया है. पिछले महीने उत्तराखंड में चीन ने पुल तोड़ दिया था। मतलब चीन भारत से लगी तमाम सीमाओं में घुस कर तथाकथित विकास सामयिक दृष्टि से कर रहा है और हमारी चुप्पी का पूरा फायदा उठा रहा है। 

कांग्रेस ने कहा इसके अलावा चीन भूटान से बातचीत करता है और भारत सरकार चुप रहती है। चीन श्रीलंका में बंदरगाह ले लेता है और मालदीव में द्वीप ले लेता है और सरकार चुप रहती है। चीन पाकिस्तान के ग्वादर पोर्ट को हथिया लेता है और सरकार चुप रहती है, ऐसा क्यों?

याद करिए फ़रवरी में कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने प्रेस कॉन्फ्रेंस करके लद्दाख से चीनी सेना की वापसी पर सवाल किया था। राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री मोदी पर आरोप लगाया है कि वो डरपोक हैं और उन्होंने देश की पवित्र जमीन को चीन को सौंप दिया है. कांग्रेस नेता का सवाल था कि पेगांग सागर में भारतीय सेना की जगह जो पहले फिंगर 4 पर थी, सरकार ने उसे अब फिंगर 3 पर सहमति क्यों दी? प्रधानमंत्री और रक्षा मंत्री ने भारत की जमीन को चीन के हवाले क्यों किया?


राहुल गांधी का यह सवाल आज तक अनुत्तरित है। लद्दाख के भाजपा सांसद की चीनी घुसपैठ की आवाज भी संसद में दबाई गई उसके बाद सीमा उल्लंघन के अनेक सवाल उठे लेकिन वही ढाक के तीन पात। अब तो सीमा के अंदर घुसकर गांव के नाम पर फौजी छावनियां तमाम आधुनिक सुविधाओं से लैस बन गई हैं, और बनती जा रहीं हैं। तो रह रह कर एक सवाल ही मन में आता है कि कहीं इस व्यापारी सरकार ने भारतभूमि का ये हिस्सा चीन को बेच तो नहीं दिया जिसकी पटकथा साबरमती के झूला पर बैठकर लिखी गई। हमारे जांबाज सैनिकों ने कठिन परिस्थितियों में रहकर तथा कारगिल और नेफा हमले में अपनी जान देकर जो ज़मीन सुरक्षित रखी, उसी पर चीन हमारी वर्तमान कमज़ोर सरकार का फायदा ले रही है। अगर पेंटागन रिपोर्ट गलत हो तो उनसे सवाल सरकार क्यों नहीं करती ? कांग्रेस को भी जवाब दो। देशवासियों को भी बताओ। दाल में ज़रुर काला है। जय जवान और जय किसान का नारा आज इस सरकार ने खोखला कर दिया है। यू ए पी ए का जिस तिस पर इस्तेमाल करने पर सुको रोक लगाए ताकि असलियत उजागर हो।
आज फिर एक बार वही हालात सामने आ रहे हैं आंखिर देश की जनता को गुमराह क्यों और किसके कहने पर किया जा रहा है ? जवाब तो देना होगा। इस पूरे मुद्दे पर सोशल मीडिया ए घमशान चल रहा है पर हमारी मेन स्ट्रीम मीडिया से यह पूरा मामला गायब है।

Sunday, 7 November 2021

गजब का रोंग नम्बर….


ट्रिंग ट्रिंग ट्रिंग ट्रिंग ट्रिंग ट्रिंग………..
मैंने अननोन नंबर देखकर थोड़ा सोचा फिर फोन उठा लिया। अक्सर में अननोन नम्बर को एक बार में रिसीव नही करता हूँ। चाहे सामने से कोई भी हो…… 

उस वार्ता के कुछ अंश आपके सम्मुख रख रहा हूँ, एक भाई की हालत व मेरी आज की आपबीती पर अपनी प्रतिक्रिया अवश्य दें ।

"हेलो...."
उधर से एक महिला की ग़ुस्से से भरी आवाज़ आई। जिसे सुनकर कुछ बोलने की हिम्मत नही हुई। फिर……..
"इत्ती देर से फोन कर रही हूँ आखिर उठा काहे नहीं रहे थे? किसी नजारे को देखने में मगन थे क्या?"

"अनजान नंबर से काल आ रही थी तो थोड़ा देखने ...."

 सामने से मेरी बात पूरी होने से पहले ही काट दी गई


"इसका मतलब मेरा नंबर भी सेव नहीं है क्या तुम्हारे मोबाइल में...? तुम्हें क्या तुम्हें तो अपनी सीता गीता रीता से फुरसत मिले तब न... जनाब के मोबाइल में दुनिया जहान का नंबर सेव रहता है बस बीवी का ही नंबर नहीं रहता। तुम बाकी छोड़ो ये तो घर आओ फिर निपट लूँगी। बताती हूँ तुमको शाम को, सामान नोट करो वो लेकर आ जाना" आवाज का जोश बढ़ता जा रहा था।

"जी बोलिये..."

"बड़ा जी जी कर रहे हैं आज फिर चढ़ा ली क्या ?” इस बार तिलमिलाहट में दांत पीसने की आवाज भी सुनी जा सकती थी।

"जी..."

"अपनी मां की तरह ढपोरशंख ही रहोगे, जैसे वो दिन भर राम-राम करती फिरती हैं, लेकिन खटमल की तरह खून पीने का एक भी मौका नहीं छोड़ती। हुंह तुम सामान लिखो और लेकर घर आओ फिर बताती हूँ।"

"जी"

"फिर जी.... तुमको न तुम्हारी बहन का जीजा बना दूंगी सामान लिखो” वो लगभग चिल्लाते हुए बोले जा रही थीं।मैं अचरज से सुन रहा था और एक अच्छे बच्चे की तरह जवाब दिए जा रहा था।  

"बताइए"

"आलू पांच किलो, टमाटर एक पौवा, सोया वाला साग एक गड्डी, सौ ग्राम धनिया पत्ती, एक पाव लहसुन, आधा किलो प्याज..... लिख रहे हो न?" उसने फिर दांत पीसा जिसे मैं आसानी से सुन सकता था। 

"लिख रहा हूँ....."

"लिख रहे हो तो हूँ हाँ कुछ तो बोलो। किस्मत फूट गई मेरी जो तुम्हारे जैसे निकम्मे से शादी हुई। लिखो साबूदाना एक किलो, चीनी दो किलो, चायपत्ती एक पैकेट ठीक है इतना लेकर आ जाओ बाकी घर मे आकर पर्चा बना लेना फिर जाना" लंबी सांसें छोड़ते हुए मोहतरमा बोले जा रही थीं।

"जी सामान तो ले आऊंगा पर घर का पता तो बता दो"

"घर का पता.... तुम गुड़िया के पापा नहीं बोल रहे"

"नहीं.... हेलो ...हेलो ..."

फोन कट गया,, अब कॉल बैक कर रहा हूँ तो उठा ही नही रहीं मैडम जी, नम्बर बिजी बता रहा है। मैं यहाँ बैठा उन भाई साब की खैर मना रहा हूँ जिनका नंबर अब लगा होगा क्या हुआ होगा उस बेचारे के साथ..!! 
क्या यार ये मोबाईल फोन भी गजब की बला है। एक नम्बर ऊपर-नीचे तो अर्थ का अनर्थ होते देर नही लगती। टेलिकॉम कम्पनियों ने अब नम्बर डायल करते ही फोन की स्क्रीन पर फोटो भी दिखानी चाहिए, तांकी ऐसी घटनाओं की भविष्य में पुनरवृत्ति न हो। खैर सोच कर खुश हूँ कि कॉल मुझे ही आई तो कोई समस्या नही माँ जी को आती कि तुम्हारी बहु बोल रही हूँ तब बड़ी आपदा होती !

Thursday, 4 November 2021

इस बार की दीपावली बहुत खास है !!

दोस्तों नमस्कार 👏🏻

हम सब पूरे दिन बिजी रहते हैं। अपने किसी ना किसी काम में दिन निकाल देते हैं। लोगों के बीच में पर जब रात का वक्त होता है ना तब आप सच में अकेले होते है और फिर आप याद करते हैं। उन चुनिंदा लोगों को या लोग को जिनका साथ आप सच में चाहते हैं और इत्तेफकान वो आपके साथ नहीं होता है। फिर आप खुद से ताना बाना बुन्ने लगते हैं की ग़र वो होता तो क्या होता और ग़र नहीं है तो क्यूँ नही है ? क्या हम उनके साथ हो नही सकते फिर आपकी सारे दिन की थकान इस कौतूहल पे भारी पड़ जाती है। तब जब सामने वाला आपके इस ख़्याल से वाक़िफ़ भी नही या ये कह ले की वो ये सोचता तक नहीं।

ख़ैर आप अपने साथ सिर्फ़ रात में जब आप बिस्तर पे होते हैं तभी होते है और आपके ज़िंदगी की कुछ सबसे अच्छी यादें तब ही याद आती है।


इस बार की दीपावली बहुत खास है,इसलिए नहीं कि मेरे घर में बहुत शानदार महंगा पेंट हुआ या नहीं, इसलिए भी नहीं कि मैंने कोई महंगी कार या ज्वैलरी खरीदी या नहीं, न ही इस बात के लिए खास है कि मुझे बिजिनेस में बहुत बड़ा मुनाफा हुआ या नहीं, या मेरी सैलरी में बहुत वृद्धि हुई या नहीं, इसलिए तो बिल्कुल भी नहीं कि मेरे घर में ढेरों पकवान बने है या नहीं, और इसलिए भी नहीं कि परिवार में सबको नए महंगे कपड़े या घर में खूब सारी सजावट या रात भर महंगी आतिशबाजी हुई या नहीं।

इस बार की दीपावली खास है, बहुत ज़्यादा खास। क्योंकि इस दीपावली को हम अपने और अपने पूरे परिवार को जीवित, सांस लेता हुआ, हंसता हुआ देख पा रहे हैं। इस बार की दीपावली इसलिए खास है क्योंकि हमें भरोसा हुआ कि कुछ ऐसे लोग है जिनको एक आवाज़ देने पर मदद के लिए हमेशा तैयार मिलेंगे, इस बार की दीपावली इसलिए खास है कि प्रभु ने अपनी विशेष कृपा हम पर बनाई रखी और हमें इस बात का अहसास दिलाया कि ज़िन्दगी में ऊपरी चमक दमक, पैसा, प्रॉपर्टी, शानोशौकत बस एक छलावा और इस पर ज़रा सा भी इतराने या घमंड करने की ज़रूरत नही है। इस बार की दीपावली इसलिए खास है क्योंकि मुझे उन लोगों के लिए थोड़ा बहुत करने का मौका मिला जिनके लिए हर रात अँधेरी और निराशा से भरी हुई है।

इस दीपावली बस धन्यवाद दीजिये अपने करीबी लोगों को, नमन कीजिये उन लोगो को जो इस दीपावली पर अपने परिवार के साथ नहीं है, धीरज बढ़ाइये उनका जो उजड़ गए है, सहारा दीजिये उन्हें जिनको आपकी बहुत जरूरत है। गले लगिये दोस्तों से, परिवार के साथ जी भर के हंसिये, रिश्तेदारों से उलझी हुई सब गांठे खोल लीजिये और प्रार्थना कीजिये प्रभु से, जिसने हमें इस दीपावली को उत्साह से मनाने का अवसर दिया।


हर्षोल्लास एवं प्रकाश के पुनीत पर्व दीपावली की आपको हार्दिक शुभकामनाएं। दीपों का यह महापर्व आपके जीवन में सुख-समृद्धि, उन्नति एवं खुशहाली लाए तथा माँ लक्ष्मी जी की कृपा एवं आशीर्वाद आप पर सदैव बना रहें।

 
Happy Dipawali 🪔
#शुभ_रात्रि❤️🙏🏻

Tuesday, 2 November 2021

❣️गिफ्ट की अदला बदली बंद इस दीपावली......



सोच रहा हूं क्यूँ न इस दीपावली हम सब मिलकर एक नया विचार करें, दोस्तों ओर रिश्तेदारों को मिले तो बिना गिफ्ट के मिले। उस गिफ़्ट के बचे पैसे से किसी की दीपावली मनाने में सहयोग करें। ये क्या वाहियात परम्परा हम शुरू कर बैठे कि..... 


तुम मेरे यहाँ आना तो गिफ्ट लेते आना और फिर मैं तेरे यहाँ जाऊंगा तो गिफ्ट लेता जाऊंगा। बड़ी-बड़ी कंपनियां चांदी काट रही हैं और हम जैसा मध्यम वर्ग डिब्बों के रेट उलट पलट रहा है कि किस दोस्त को क्या देना है ? कौन सा रिश्तेदार कितनी हैसियत का है ? कोई दोस्त या रिश्तेदार महंगा गिफ्ट देता है तो उसको गिफ्ट भी महंगा ही वापिस करना होगा और कोई दोस्त या रिश्तेदार हल्का गिफ्ट देता हैं तो उसको गिफ्ट भी हल्का देने से काम चल जाएगा। ऐसा माहौल बनाया जा रहा है , आज टीवी और सारा मीडिया आपको ये बताने पर लगा है कि कितना-कितना सामान कहाँ-कहाँ बेचा जा रहा है, ये खबरे नहीं है दोस्तों ये आपका दिमाग घुमाने की साजिश है कि आपको लगे सारी दुनिया लगी है सामान खरीदने में आप रह गए पीछे....................          


इस साल इस विचार पर काम करे, दीवाली को दीवाला न बनाए
हमारे पूर्वजों ने तो केवल खील, बताशे, चीनी के खिलौने लक्ष्मी पूजन के बाद प्रशाद के रूप में अपने पड़ोसियो के देने की परंपरा
बनाई थी। परन्तु हम सबने दिखावे के लिए इस परंपरा को महंगे महंगे गिफ्टों में बदल दिया, एक मध्यम वर्ग का मुझ जैसा इंसान किसी दोस्त और रिश्तेदार के पास जाने से पहले सौ बार गुणा भाग करता है और अंत मे इस निष्कर्ष पर पहूंचता है कि रहने दो अगली दीपावली देखेंगे ..…….

❣️❣️❣️❣️❣️

“दोस्तों जिंदगी में पराया कोई नहीं होता,
सिर्फ मन का वहम है... 
भरोसा रूका तो इंसान पराया होता जाता है 
और सांसे रूकी तो शरीर…..!!!”

❣️❣️❣️❣️❣️