जरा दिमाग में जोर देकर याद कीजिए जब मोबाइल नहीं थे, लैंड लाइन भी नहीं के बराबर थे। उस वक़्त एक व्यक्ति विभिन्न जाति या संप्रदायों में संदेश वाहक होता था जो खबरें लेकर सभी जगह जाता था। वह व्यक्ति मृत्यु के संदेश भी लाता था और पैदा होने से विवाह तक के भी। अगर वह एक ही महीने के अंदर कई शोक संदेश ले आता था तो लोग उसे मनहूस मानने लगते थे और उसे देखते ही डरने लगते थे कि "हे ईश्वर हमें बुरी खबर अब मत देना।"
रोबर्ट ग्रीन अपनी किताब '48 लॉज़ ऑफ पॉवर' में शायद इसीलिए एक नियम शक्ति का यह भी बताते हैं कि आप लोगों को बुरी या मनहूस खबरें न सुनाए। उस शोक की खबर लाने वाले व्यक्ति को देखकर आपकी धड़कने बढ़ने लगती थी और दिल बैठने लगता था, पसीना निकलने लगता था और पूरे शरीर में झुनझुनी होने लगती थी...।
अब संदेश वाहक की जगह आपके-हमारे मोबाइल फोन ने ले ली है। अब सारे संदेश मोबाइल ही लेकर आता है। आपकी एकाउंट डिटेल, ट्रांज़िक्शन, नौकरी की सूचना, सेलेक्ट या रिजेक्ट होने की सूचना सब कुछ मोबाइल पर ही आती हैं। अगर आप रात में किसी के एक्सीडेंट या मृत्यु की खबर सुनते हैं और यह कई बार होने लगता है तो आपका मस्तिष्क उन्हें अपनी स्मृति में सुरक्षित कर लेता है और फिर मोबाइल की घंटी बजते ही आपके दिल की धड़कनें बढ़ने लगेंगी, पसीना आने लगेगा, सांस फूलने लगेंगी, नींद उड़ने लगेगी। अगर आपको किसी ने धमकी दी हो या ब्लैकमेल किया हो या किसी पुलिस अफसर ने आप से किसी केस के बारे में कई बार फोन करके पुलिस स्टेशन बुलाया हो तो फिर यही लक्षण कई कई गुना बढ़ जाते हैं। आप एक मनोवैज्ञानिक समस्या से ग्रस्त हो जाते हैं और इसका निराकरण न करने पर कई मानसिक और शारीरिक समस्याओं से ग्रसित भी हो जाते हैं जैसे- आईबीएस, अनिंद्रा, डिप्रेशन, फोबिया, अपच, बेचैनी, अनियंत्रित धड़कन, सिरदर्द, बदन दर्द, सीने में दर्द आदि।
इस पर मेरे एक रोगी मित्र ने मुझसे पुछा था कि मोबाइल फोन के आने के बाद हम सब इतने मानसिक रूप से बीमार क्यों होने लगे हैं और शारीरिक रोग भी इतने क्यों बढ़ गए हैं। जैसा कि हम सभी जानते हैं, हमारा शरीर पहले से उपस्थित किसी अंग को बदलने पर किसी और का अंग लगाने पर प्रतिक्रिया देता है जिसके लिए सर्जन कई दिनों तक स्टेरॉइड देते हैं ताकि प्रतिक्रिया ना हो। अब 21वीं सदी में तो हमने एक नए अंग मोबाइल फोन को ही अपने शरीर का हिस्सा बना लिया है तो प्रतिक्रिया या रिएक्शन तो होगी ही।तो सोच लो किस हद तक बिमार हो चुका इन्सान।
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