Saturday, 6 March 2021

वाह क्या ज़िन्दगी है

वाह क्या ज़िन्दगी है आज के दौर में शहरों से सुरु अब गाँव भी पहुँचने को है, कहीं-कहीं तो पहुँच भी चुकी है। अब जरा गौर फ़रमाए, आज मार्ट में कोई सब्जी सही नहीं थी। पार्किंग एरिया से गाड़ी निकालता महिपाल अपने बराबर की सीट पर बैठी पत्नी मधुलिका से चर्चा करने लगा।

हाँ!.
प्याज भी ढंग के नहीं मिले।
फिर भी लेकिन दाम कम नहीं थे।
दाम की तो बात मत करो!.
प्याज भी पचास से कम हुए कभी?

मार्ट के कैम्पस से बाहर निकलते ही वहीं बगल में सड़क किनारे जालीनुमा पैकेट का अंबार लगाए ग्राहकों के इंतजार में उदास खड़े उस नौजवान से महिपाल यूं पूछ बैठा 
क्या बेच रहे हो भाई?
प्याज है सर!
कैसे दिए?
डेढ़ सौ के पाँच किलो।
यानी तीस रुपए किलो!
हाँ सर!.
अपने खेत का एकदम फ्रेश प्याज है।


यहां बाहर प्याज लगभग आधी कीमत पर बिक रहा है फिर भी लोग मार्ट के भीतर उन सड़े हुए प्याज में क्यों उलझे हैं?
पत्नी मधुलिका आश्चर्य से उसका मुंह देखने लगी।
“भाग्यवान! इसे ट्रेंड कहते हैं!" 
मतलब?
"भेड़चाल!. जो एक करता है बिना सोचे समझे सब वही करते हैं।"
अच्छा जी!.
फिर चलो हम इस ट्रेंड को बदल देते हैं। यह कहते हुए मधुलिका प्याज विक्रेता से मुखातिब हुई।
भैया! पाँच किलो वाले दो पैकेट हमारे हमारी गाड़ी की डिक्की में डाल दीजिए।
अभी उसकी गाड़ी की डिक्की खुल ही रही थी कि मार्ट के भीतर प्रवेश करते एक और कार में बैठे दंपति उन्हें कुछ खरीदते देख रुक गए और फिर से वही सवाल.. 
पैकेट में क्या है?
सर प्याज हैं!
कैसे दिए?
डेढ़ सौ के पाँच किलो।
प्याज विक्रेता उनकी डिक्की में पैकेट डाल उस गाड़ी के करीब पहुंचा।

दो पैकेट हमारी डिक्की में भी डलवा दो!
देखते ही देखते प्याज के सारे पैकेट एक-एक कर मार्ट में आती गाड़ियों के डिक्की में समा गए। कुछ देर यह तमाशा देख दोनों पति-पत्नी अपनी गाड़ी स्टार्ट कर वहां से चलने को हुए। तभी हाथ हिला उन्हें रुकने का इशारा कर वह प्याज विक्रेता लगभग दौड़ता हुआ उनकी गाड़ी के करीब आया और उसे आता देख वह भी रुक गया।

"भाई तुम्हारे सारे प्याज तो बिक गए!" 

वह मुस्कुराया लेकिन प्याज विक्रेता ने उसके प्रति कृतज्ञता से दोनों हाथ जोड़ लिए 
"थैंक यू सर!"

#भेड़चाल

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