सुनो ऐ हुक्मरानों,
मुझे नहीं चाहिये तुम्हारा देश,
तुम्हारा राष्ट्र
और ये तुम्हारा राष्ट्रवाद
जहाँ चलती हो गोलियाँ, बहता हो लहू
पहचाना जाता हो आदमी
दाढ़ी, टोपी, तिलक और जातियों से
जहाँ जलाई जाती हो औरते
और बनाई जाती हो जाति और धर्म की मर्यादा
औरतों की जलती हुई चिता पर बना दिये जाते है धर्म के मंदिर
मुझे नही चाहिये ऐसा देश
मुझे तो थोड़ी सी जमीन चाहिये
जहाँ ऊगा सकू थोड़ा सा अन्न
थोड़ी सी सब्जियां पेट भरने को
मेरा, तुम्हारा, उनका सबका पेट भर सके जो भूखे है
मुझे बंदूक नही बोना है, ना ही बारूद, क्योंकि इनसे पेट नही भरता।
#FarmersProtest
No comments:
Post a Comment