Friday, 14 August 2020

मोबाइल की सवारी करके घर तक आ पहुंचा है स्कूल


कुछ दिनो पूर्व फ़ोन पर अपने एक मित्र से उसकी कहानी सुनी तो बड़ा अच्छा लगा कि हम निरंतर विकास की ओर अग्रसर हैं। हमारा भले ही कुछ ख़ास हो नही पाया परन्तु आने वाली नई पीढ़ी जरुर कुछ नया करेगी, ऐसा हर मध्यम वर्गीय परिवार सोच रहा है आज, सोचे भी क्यूँ नही, अभी सोचने पर फ़िलहाल कोई टैक्स थोड़े ही लग रहा है। चलो अब सीधे मुद्दे पर आकर उस बातचीत का कुछ अंश आपके सामने पेश करता हूँ। आपको कैसा लगा जरुर बताइयेगा अपने-अपने अनुभव!!••••••••••


वैसे आजकल गर्मी का मौसम है तो आप अंदाज़ा लगा सकते हैं शहरों में क्या हाल है अभी। कुछ दिन पहले मुझसे बेटी ने कहा-पापा घर में आप अंडरवियर और बनियान में इधर-उधर न घूमा करें क्यों कि मोबाइल पर अब स्कूल घर पर आ गया है। कल मोबाइल पर मिस मुझे पढ़ा रही थी तब आप अंडरवियर और बनियान में मेरे पीछे घूम रहे थे।
यह दृश्य देखकर मिस शर्मा गयी थीं और मुझसे पूछा था कि तुम्हारे घर में कैसा बदतमीज नौकर है जो अंडरवियर और बनियान में बेधड़क इधर-उधर घूमा करता है। तब मैंने मिस से कहा कि ये मेरे घर का नौकर नहीं, बल्कि मेरे पापा हैं जो घर पर हाफ पैंट, अडरवियर या बनियान में घूमा करते हैं। बेटी की बातों को सुनकर मैं सकते में आ गया और खुद में सुधार लाने की कोशिश करने लगा। बाद में सोचा कि यह सच है कि अब स्कूल मोबाइल की सवारीकरके घर तक आ पहुंचा है।
इसलिए मुझे भी उस स्कूल के कायदे कानून और उसमें  पढ़ाने वाली मिसों का ख्याल रखना चाहिए। लेकिन मुझे याद है कि एक बार गलती से बेटी मेरा मोबाइल अपने बैंग में लेकर स्कूल चली गयी थी तो इसी मिस ने मुझे बुलाकर कहा था कि आपको शर्म नहीं आती कि आप बच्ची को मोबाइल के साथ  स्कूल भेज देते हैं। तब मैंने बेटी की गलतियों का अहसास करते हुए उनसे क्षमा मांग लिया था और कहा था कि अब मेरी बेटी मोबाइल नहीं देखा करेगी।
इसके बाद मैंने बेटी को मोबाइल देना बंद कर दिया था। लेकिन जैसे ही कोरोना युग शुरू हुआ तब उसी स्कूल के प्राचार्य ने मुझे काल करके कहा कि आप बच्ची को मोबाइल दिया करें क्यों कि अब बच्चियों को मोबाइल पर ही
पढ़ाया जा रहा है। इसके बाद सोचा कि स्कूलों के भी सिद्धांत समय के साथ-साथ बदलते रहते हैं। कल तक जो स्कूल बच्चों को मोबाइल देने से मना कर रहे थे अब वे अभिभावकों को उन्हें मोबाइल देने सलाह दे रहे हैं।
यह सब देख-सुनकर मेरी पत्नी ने मुझसे कहा कि आने वाले दिनों में मोबाइल स्कूल भी खुलेंगे। तब बच्चे स्कूल नहीं जायेंगे और मोबाइल पर ही पढ़ाई करके उंची डिग्रियां हासिल करेंगे। जब लालू यादव बिहार के मुख्यमंत्री थे तब उन्होंने चरवाहा विद्यालय, पहलवान विद्यालय खोला था।
मैंने कहा तुम ठीक कहती हो। अब जबकि गूगल और मोबाइल ही दुनिया के ज्ञान गुरु हो गये हैं तो कुछ भी संभव है।अब तो मोबाइल पर विवाह भी हो रहा है। मोबाइल पर अदालते लगायी जा रही हैं। जज से लेकर वकील और मुवकिल तक मोबाइल अदालत में मौजूद रहते हैं। जबकि परिवार के टूट जाने की सुनवाई ऐसी अदलत में चल रही होती है और दूसरी और मौजूद लड़की अदालत के निर्णयों पर असहमति जताते हुए अपना मोबाइल स्वीचआफ कर लेती है तो अदालत को सुनवाई बंद करनी पड़ती है। आगे मैंने कहा सभी प्रकार की दुकानें मोबाइल पर खुल गयी हैं। यहां तक कि  विश्वविद्यालयों के द्वारा वेविनार का आयोजन किया रहा है। एक समय ऐसा भी आयेगा जब सरकार को मोबाइल विश्वविद्यालय और मोबाइल स्कूल खोलने पड़ेंगे। तब ऐसे विश्वविद्यालय के कुलपति को मोबाइल कुलपति, मोबाइल प्रोफेसर, मोबाइल स्कूल, मोबाइल प्राचार्य के नाम से जाना जायेगा। स्कूल, बस्ता, काँपी, पेन्सिल, स्कूल बैग, स्कूल ड्रेस सब बीते जमाने की बातें होंगी तब। आने वाले समय में इस पर भी शोध किए जायेंगे। 
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