अधिकांश सुन्दरी-सेवियों के जीवन में एक ऐसा समय आता है जब सुंदरियाँ उनके पास श्रद्धा-पूर्ण पत्र भेजने लगते हैं। कोई उनकी शारीरिक प्रशंसा करता है कोई उनके सद्विचारों पर मुग्ध हो जाता है। मुझ जैसे अदने से लेखक को भी कुछ दिनों पूर्व यह सौभाग्य प्राप्त है। ऐसे पत्रों को पढ़ कर हृदय कितना गद्गद हो जाता है इसे किसी मुझ जैसे भोले लड़के ही से पूछना चाहिए। अपने फटे कंबल पर बैठा हुआ वह कैसे गर्व और आत्मगौरव की लहरों में डूब जाता है। भूल जाता है कि रात को गीली लकड़ी से भोजन पकाने के कारण सिर में कितना दर्द हो रहा था खटमलों और मच्छरों ने रात भर कैसे नींद हराम कर दी थी। मैं भी कुछ हूँ यह अहंकार उसे एक क्षण के लिए उन्मत्त बना देता है। पिछले साल सावन के महीने में मुझे एक ऐसा ही पत्र मिला। उसमें मेरी मनगणत प्रसंग की दिल खोल कर दाद दी गयी थी।
पत्र-प्रेषक स्वयं एक अच्छे कवि हैं। मैं उनकी कविताएँ पत्रिकाओं में अक्सर देखा करता हूँ। कवि महोदय का पत्र, पत्र कम किसी उपहार से कहीं अधिक मर्मस्पर्शी था। प्यारे भैया ! कह कर मुझे सम्बोधित किया गया था मेरी रचनाओं की सूची और प्रकाशकों के नाम-ठिकाने पूछे गये थे। अंत में यह शुभ समाचार है कि मेरी पत्नी जी को आपके ऊपर बड़ी श्रद्धा है। वह बड़े प्रेम से आपकी रचनाओं को पढ़ती हैं। वही पूछ रही हैं कि आपका विवाह कहाँ हुआ है। आपकी संतानें कितनी हैं तथा उनकी कोई फोटो भी है हो तो कृपया भेज दीजिए। मेरी जन्म-भूमि और वंशावली का पता भी पूछा गया था। इस पत्र विशेषतः उसके अंतिम समाचार ने मुझे पुलकित कर दिया।
यह पहला ही अवसर था कि मुझे किसी महिला के मुख से चाहे वह प्रतिनिधि द्वारा ही क्यों न हो अपनी प्रशंसा सुनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। गरूर का नशा छा गया। धन्य है भगवान् ! अब रमणियाँ भी मेरे कृत्य की सराहना करने लगीं ! मैंने तुरंत उत्तर लिखा। जितने कर्णप्रिय शब्द मेरी स्मृति के कोष में थे सब खर्च कर दिये। मैत्री और बंधुत्व से सारा पत्र भरा हुआ था। अपनी वंशावली का वर्णन किया। कदाचित् मेरे पूर्वजों का ऐसा कीर्ति-गान किसी भाट ने भी न किया होगा। स्पष्ट से अपनी बड़ाई करना उच्छृंखलता है मगर सांकेतिक शब्दों से आप इसी काम को बड़ी आसानी से पूरा कर सकते हैं। खैर मेरा पत्र समाप्त हो गया और तत्क्षण लेटर बॉक्स के पेट में पहुँच गया। इसके बाद से आज तक कोई पत्र न आया।
अपने विवरण के पूर्ण होने के पश्चात् मुझे अनायास ही याद आया “चांद सी महबूबा हो मेरी” गाने में हीरो अपनी हिरोइन के मोटापे से दुखी है। वह उस पर उसका मज़ाक़ भी बनाता है और डर के मारे खुद के मन को भी समझाता नजर आता है। वही अधिकतर हमारे समाज की भी समस्या आन पड़ी है। तभी तो आज प्रातः भ्रमण पर सड़क का नजारा आप देख सकते हैं। इतनी सुबह-सुबह आंखिर किसको क्या चाहिए। इसी उधेड़बुन में हम लगातार भीड़ का हिस्सा बने हुए हैं। उसने हरगिज़ नही सोचा था कि महबूबा एक ही बच्चे के बाद चांद जैसी गोल मटोल हो जायेगी। अगली लाइन में पिटने से बचने के लिए बेचारा मजबूरी में बोला "हां तुम बिलकुल वैसी हो जैसा मैंने सोचा था"। यही हाल मेरे कुछ साथियों का भी है, यदि किसी के दिल पर लगे तो क्षमाप्रार्थी हूँ। वैसे मेरी नजर से तुम देखो तो फिर एक मस्त फ़साना याद आयेगा, ऐसे न देख मुझे नजर लग जायेगी, चोट जाने कहां-किधर लग जायेगी”। चल हट झूठे, बुरी नजर वाले तेरा मुँह काला।
खैर अब तो अपनी महबूबा की तुलना भी कोई चाँद से करने में इतना कतरायेगा, जैसे विक्रम वेताल ने कोई डरावनी कहानी से रूबरू कराया हो। इस पर बहादुर शाह ज़फ़र ने क्या खूब फ़रमाया है,—
तुम ने किया न याद कभी भूल कर हमें,
हम ने तुम्हारी याद में सब कुछ भुला दिया।
व्यक्ति में इतनी ताकत हमेशा होनी चाहिए कि अपने दुख अपने संघर्षों से अकेले जूझ सके। जिस दिन ये समझ आ गया तो उस दिन लगने लगेगा बस जीवन इसी का एक पहलू है।
“सिंह सुवन, सत्पुरुष वचन, कदली फलै इक बार,
तिरिया तेल हमीर हठ, चढ़ै न दूजी बार.“
यानीं सिंहनी एक बार में एक ही शावक को जन्म देती है सज्जन लोग बात को एक बार ही कहता है, केला एक बार ही फलता हैं। स्त्री को एक बार ही तेल उबटन लगाया जाता हैं ऐसा ही राव हम्मीर का हठ हैं यानि हम्मीर देव चौहान ने एक बार जो ठान लिया, फिर वो अपनी भी नहीं सुनते थे, इस कारण इन्हें हठीला हम्मीर भी कहा जाता हैं।