इंटरनेट का उद्देश्य लोगों को बाहरी दुनिया से आसानी से जानकारी प्राप्त करने की अनुमति देना है, ताकि वे अधिक बुद्धिमान बन सकें। हालाँकि, वास्तविकता यह है कि लोग इंटरनेट के माध्यम से बाहरी जानकारी और ज्ञान अधिक आसानी से और तेज़ी से प्राप्त कर सकते हैं, लेकिन लोगों की तथ्यों की जानकारी करने की क्षमता कमजोर हो गई है। बहुत से लोगों ने इंटरनेट के माध्यम से अपना दायरा बना लिए हैं, और विरोधी पक्ष की जानकारी प्राप्त करने से इनकार दिया है। वे पूर्व-इंटरनेट युग के लोगों की तुलना में अधिक समझदार के बजाये अधिक जिद्दी बन गये हैं। क्या इंटरनेट के उपयोग ने लोगों को बेवकूफ़ बना दिया है?
बड़े डेटा और "एल्गोरिदम" तकनीक ने इस रूझान को और बढ़ा दिया है। लोग केवल इंटरनेट द्वारा अनुशंसित सामग्री को स्वीकार करते हैं जो उनके स्वाद के अनुरूप है और प्रत्येक नेटीजन अपनी छोटी सी दुनिया में व्यस्त है, और हर कोई केवल वही देखता है जो उसे पसंद है। जिनके कारण लोग अधिक से अधिक संकीर्ण सोच वाले और अतिवादी बन जाते हैं। इसके अलावा, इंटरनेट दुनिया भर से समान विचार वाले लोगों को तुरंत एक साथ इकट्ठा होकर एक ही आवाज उठाने और उन लोगों को घेरने में सक्षम बनाता है जो उनके विचारों से सहमत नहीं हैं। इसे "सूचना कोकून" कहा जाता है, अर्थात, यदि कोई व्यक्ति लंबे समय तक केवल एक निश्चित सूचना स्रोत पर ध्यान देता है, तो वह एक स्व-बुने हुए कोकून में खुद को बंद कर लेगा, और बाहरी दुनिया को देखने की क्षमता खो देगा।
वर्तमान सोशल सॉफ़्टवेयर प्लेटफ़ॉर्म में एक बड़ी खामी है। एक व्यक्ति दूसरे पदों पर बैठे लोगों को ब्लॉक कर सकता है, इसलिए वह केवल अपने समान आवाज़ सुन सकता है और जब ऐसे अधिक लोग एक साथ इकट्ठा होंगे, तो छोटे दायरे में एक ही राय दोहराई जाएगी और लगातार फैलती रहेगी, जिससे इस दायरे के लोग अधिक से अधिक संकीर्ण और अतिवादी हो जाएंगे। विपरीत दृष्टिकोण के बिना सोचने का यह तरीका बहुत खतरनाक है और यह खतरा वेब में बढ़ रहा है। एल्गोरिथ्म तकनीक जितनी अधिक विकसित होगी, सामग्री पुश तंत्र उतना ही अधिक परिष्कृत होगा। नेटवर्क प्रत्येक नेटीजन को सटीक रूप से अनुशंसा कर सकता है जो वे अधिक पसंद करते हैं। जैसे कि पिंजरे में बंद पालतू जानवर को भोजन पहुंचाते हैं। इस नेटवर्क वातावरण में गठित विचार को सचमुच बुद्धिमान नहीं माना जा सकता है।
विभिन्न विचारों के टकराव और बहस में ही सत्य की तलाश की जा सकती है। लेकिन, आज के नेटिज़न्स पूरे दिन अपनी ही छोटी सी दुनिया में डूबे रहते हैं और तथ्यों और सच्चे विचारों पर ध्यान देने के बजाय सोचते हैं कि केवल जो जानकारी उन्हें मिलती है वह सही है, वे अपने विचारों के खिलाफ किसी भी चुनौती से इनकार करते हैं। हम देखते हैं कि कई युवा नेटिज़न्सों ने चीजों को दूसरों के नजरिए से देखने की क्षमता खो दी है, और बाहरी दुनिया के लिए उनकी नफरत भावना तेजी से चरम पर पहुंच गई है। और उन्हें खुद भी कोई असुविधा महसूस नहीं है।