धरती से टकराने वाली बारिश की बूंदों की खुशबू मेरी आत्मा को भर देती है क्योंकि पानी का छींटा मेरे कानों के लिए शुद्ध संगीत है। सब कुछ उज्जवल और हरा-भरा है। मौसम सुंदर और रोमांटिक है।
वैसे बारिश को एक निश्चित अनुपात में होना चाहिए। इतना कि कोई गीला हो पर डूबे ना, फूल खिलें पर गलें ना, जो लोग घरों के बाहर हैं वे वापस लौट सकें। फसल और चेहरे खिल सकें। बारिश को इतना भर होना चाहिए कि किसी को याद किया जा सके, इतना ही बरसे पानी कि जिसे याद किया है उसे भुलाया जा सके।
कहते हैं न बारिश का समय वह समय होता है जब आप अपने जीवन के प्यार के साथ एक कप गर्म चाय पीते हुए बैठते हैं। आप बालकनी में या खिड़की के पास बैठे हैं, धरती को छू रही बारिश की शांत धुन सुन रहे हैं। या तो वह या आप बाहर बारिश का पानी डालने में भीग रहे हैं। यह लगभग वैसा ही है जैसे पानी हमारी सारी चिंताओं को दूर कर देता है और उस समय हम बेफिक्र, आजाद होते हैं।
कुछ लोग मौसम को उदास मान सकते हैं और जिस तरह से आप इसे समझते हैं, उसके आधार पर यह हो सकता है। गरज और रोशनी, तेज और गर्जना, अक्षम्य बाढ़। लेकिन आप दर्द में डूबते हुए आनंद को नहीं भूल सकते। दोनों उत्साह जगाते हैं, फिर भी कहीं न कहीं आप अज्ञात की गहराइयों में डूब जाते हैं। जब आप प्यार में होते हैं तो सब कुछ अधिक सुंदर और उज्जवल लगता है। यह अपूरणीय क्षति भी पहुंचा सकता है, लेकिन हम अभी भी रोमांस की महाकाव्य कहानियों से प्यार करते हैं, है ना?
बारिश तो प्रेमियों का इत्र है, बदन पे मलो तो महक उठे। फिर किसके भीतर प्रेम नहीं रहता, सभी तो गढ़ते हैं अपने हिस्से की परिभाषा। मनुष्य को न देखो तो दरख़्तों को निहारो, बरखा में संवाद करते हैं वे और सावन में उन पर डले झूले। आकाश तक पहुंचने की कोशिश में नन्हे कदम महत्वाकांक्षाओं की पहली उड़ान भरते हैं।
जब बारिश के बाद खिलते हैं धरती के रंग और मयूर के पंख तो थोड़े सुर्ख़ हो जाते हैं गाल भी। धरती पर हर बूंद के साथ नृत्य करती हैं कलियां, उनके निखर जाने का समय जो है। तमाम रंग जोड़कर इकट्ठा करता है चित्रकार, पीत में मिलाकर नील बरसाए तो हरा बने। मेघ नहीं बरसते मात्र बारिश में स्मृति भी रिसती हैं, दीवार पर पानी की बूंदें आती हैं जैसे जाने कहां से। कितना कुछ फिर लौट आता है इस बारिश, मैंने जाना कि जो नहीं है मौजूद मैंने उसे आज तक नहीं कहा है विदा।
"मेरा नाम और मेरे बारे में तो अब तक आप अपनी धारणा ke अनुरूप जान ही चुके होंगे: मैं बहुत दिनों से स्वयं को लेखकों व पत्रकारों की ज़मात में शामिल करवाना चाहता था। कोई भी कितना भी अच्छा लेखक हो, कवि हो, या ये हो या वो हो, जब तक वह पुराने पापियों के बीच घुसकर खड़ा नहीं होता, तब तक उसे मान्यता नहीं मिलती। वैसे भी लेखन में मेरा कोई बड़ा योगदान अब तक नहीं रहा है, पर जब भी कुछ लिखता हूँ तो अकसर मेरा दिल भी लेखक कहलाये जाने के लिए मचल जाता है।"
"मगरमच्छ की दुनिया पानी है। पानी से ऊबकर कुछ देर के लिए वह धरती पर आता है, धूप के मज़े लेने या खुली हवा में सांस लेने। इसी प्रकार मैदानी इलाकों में रहने वाले नीरस लोग रस की तलाश में समुद्र की ओर भागते हैं या पर्वत की ओर। मगरमच्छ और मनुष्य का स्वभाव एक जैसा है, कुछ देर के लिए बाहर निकलने का लेकिन दोनों में कुछ मौलिक अंतर है। मगरमच्छ बाहर निकल कर रेत पर पसरकर आराम करता है, जबकि मनुष्य पैदल चल-चल कर हैरान होने के लिए बाहर निकलता है। जिसे भी पैदल चलने में कष्ट होता हो, उसे अपने घर में टीवी के सामने बैठकर दुनिया देखनी चाहिए। लेकिन यदि घर से निकल पड़े तो ट्रेन, टैक्सी, ऑटो, होटल की विविध समस्याओं के साथ पैरों का दर्द सहना होगा–यह यात्रा का समानान्तर सुख है।"
बस इस बारिश की हल्की-फुल्ली रिमझिम फुहार में क्या करोगे सुनकर मुझसे मेरी कहानी, बेलुत्फ जिन्दगी के किस्से हैं कुछ फीके-फीके मेरी जुबानी।
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