♦️ क्या सोशल मीडिया कंपनियां भारत सरकार के आगे अपनी 'चौधराहट' सरेंडर करेंगी?
केंद्र सरकार की गाइडलाइंस का पालन करने के लिए ये कंपनियां अमेरिका स्थित हेडक्वाटर्स की प्रतिक्रिया का इंतजार करती हैं, तो किसी कंटेंट को हटाने के आदेश पर भी ये कंपनियां अपने मुख्यालय की प्रतिक्रिया का इंतजार करती हैं। केंद्र सरकार का मानना है कि इस स्थिति में देश के लिए खतरा पैदा हो सकता है। इन सोशल मीडिया कंपनियों को भारत में ही ऑफिस बनाकर काम करना होगा और सरकार या कोर्ट के आदेश पर कंटेंट को तुरंत हटाना होगा। समस्या की मुख्य जड़ 'सेंशरशिप' ही है। दरअसल, केंद्र सरकार की ओर से सोशल मीडिया कंपनियों को इंटरमीडियरी स्टेटस यानी बिचौलियों का दर्जा मिला हुआ है। जिसकी वजह से किसी यूजर के आपत्तिजनक कंटेंट पर इन कंपनियों को कोर्ट में पार्टी नहीं बनाया जा सकता है।
'फ्री स्पीच' का हवाला देते हुए ट्विटर लगातार मनमानी करता रहा है। माइक्रोब्लॉगिंग साइट ट्विटर ने हाल ही में भाजपा के प्रवक्ता संबित पात्रा के एक ट्वीट पर 'मैनिपुलेटेड मीडिया' (Manipulated Media) का लेबल भी लगा दिया है। वहीं, किसान आंदोलन को लेकर फैलाई गए भ्रामक कंटेंट, CAA जैसे मुद्दों पर ट्विटर की ओर से कोई कार्रवाई नहीं की गई थी। ओटीटी प्लेटफॉर्म भी ऐसे कई कंटेंट प्रसारित करते हैं, जिससे समस्याएं पैदा हो जाती हैं। इन पर कंटेंट को लेकर कोई सेंसर बोर्ड नहीं है, जिसकी वजह से हिंसा से भरा या अश्लील कंटेंट भी सबके लिए आसानी से उपलब्ध हो जाता है।सरकार इसी पर रोक लगाना चाहती है।
“घर का जोगी, जोगी, बाहर का जोगी सिद्ध पुरुष”। हम भारतीयों की एक मानसिक धारणा बन गई है जब तक हमें या हमारे किसी व्यक्ति को कोई बाहरी व्यक्ति(बाहरी देश, अन्य समाज) मान्यता नही देता तब तक वह हमारे लिए तुच्छ ही होता है। उसके बाद भी घर की मुर्गी दाल बराबर !
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