वर्तमान हालात देखकर यह कहना बिलकुल भी गलत नही होगा कि कोरोना महामारी रक्तबीज सा चरित्र लेकर आया है। रक्तबीज की तरह भयानक असुर ही है यह। जैसा हम सभी को ज्ञात है कि रक्तबीज बड़ा ही भयानक असुर था।उसे वरदान था कि उसके रक्त के एक बूंद गिरने से एक और रक्तबीज उत्पन्न हो जायेगा। इसतरह युद्ध में रक्त गिरने से हर बूंद से हजारों राक्षस पैदा हो जाता था। चहुं ओर हाहाकार मचने लगा जिससे देवता घबरा गये। रक्तबीज पूर्व जन्म में असुर सम्राट रम्भ था।जिसे इन्द्र ने तपस्या करते समय मार डाला था। इन्द्र को किसी के तपस्या से जब यह डर होने लगता था कि कहीं उसकी सत्ता कमजोर न हो जाए तो वह उस तपस्वी का तप भंग करने का कोई न कोई उपक्रम कर ही डालता था। रक्तबीज ने घोर तपस्या के बल पर ब्रह्माजी से वर ले लिया था कि उसके एक बूंद रक्त धरती पर गिरने से एक और रक्तबीज उत्पन्न हो जायेगा। असंख्य रक्तबीज के होने से सम्पूर्ण धरा पर रक्तबीज ही दिखने लगा।त्राहिमाम मच गया।शिवजी के कहने से काली जी ने उसका संहार किया और उसका रक्त भूमि पर न गिरे इसलिए उसका रक्तपान किया।
आज कोरोना भी रक्तबीज की तरह आया है।एक से असंख्य संक्रमित हो रहे हैं।आज यह भीषण आपदा महामारी का रूप ले मानव का संहार कर रही है। रक्तबीज की तरह कोरोनाबीज भी चाइना के साम्राज्यवादी प्रवृत्ति के कारण उत्पन्न असुर है। उसकी काली करतूत का नतीजा है यह कोरोना, इसे फैलाकर स्वयं चैन की बंशी बजा रहा। विश्व विजय कर शासन करने कि ललक का परिणाम है यह कोरोना। “समरथ को कछु दोष न गोसाईं।” कोरोना महामारी फैलाकर आज वह स्वयं मौज कर रहा है। हमारे देश के दिग्गज, छद्मभेषी ट्रंप के आगमन की तैयारी में पैर पसार रहे थे,कोरोना पर ध्यान ही नहीं दिया।असंख्य संक्रमित हुए, हजारों काल कवलित हो गये। ‘लौक डाउन’ हुआ देश में। उसमें भी कितने काल के ग्रास हो गये।कितने भूख से,कितने यात्रा करने में तो कितने अन्य कारणों से संक्रमित हो गये। फिर भी स्थिति काबू में हो गयी थी। बिहार में चुनावी बिगुल बज गयी। चुनाव करना आवश्यक! मैं खाऊँ, मैं ही खाऊँ वाली बात!जनता की जान पुनः सांसत में। बंगाल,असम, तमिलनाडु आदि राज्यों में चुनाव! चुनाव होना तो लाजमी था ही। राजनीति नहीं हो तो देश कैसे विकास करेगा!
इन्द्र को सत्ता चाहिये, इन्द्रासन संस्थापित करना परमावश्यक।आज चुनाव का प्रसाद बंट रहा है कोरोना के रूप में।जनता ने भी बढ़चढ कर हिस्सा लिया तो अब भुगते! इतना ही नहीं ऐसी विकट परिस्थिति में हरिद्वार में कुम्भ आवश्यक था। “अमृत कलश “जो निकलना था।पीकर राजनेताओं को अमरत्व जो पाना था। युगों तक सत्ता की बागडोर जो संभालनी थी। तथाकथित धर्म के ठेकेदार साधू महात्मा के कारण कुम्भ करने का दबाव, साथ में व्यापारी लोगों की धनलोलुपता के कारण कुम्भ का पदार्पण।आज हरिद्वार महामारी से पट गया है। हाहाकार मचा हुआ है।असमय मृत्यु को वरण कर रहे हैं लोग। हरिद्वार मौत की नगरी में तब्दील हो रही है। मुँह छुपा कर मठाधीश लोग बैठे हैं। व्यापारी मौत पर तिजारत कर रहे हैं। लोगों में हाहाकार है,रोगी के लिए, न बेड है न अक्सीजन।जांच,वेंटीलेटर कुछ भी नहीं है।नाकाम हो रही है सरकार। वैक्सीन नहीं मिल रहा है।
आखिर!हो भी कैसे!हम भारतीय हैं।हमारे यहाँ तो देने की प्रथा है।एक से बढ़कर एक ऋषि हुए जो अपना सब कुछ दान कर दिये दधीचि ने अस्थि तक दान कर दिये,जनक अपने जामाता को सिर, कर्ण कवच कुंडल आदि अनेकों दानवीर से इतिहास भरा पड़ा है इसमें अगर वैक्सीन दान दे दिया गया तो कौन बड़ी बात हुई! देश अपना परम्परा का निर्वाह कर रहा है। अपने तो अपने होते ही हैं।परायों को अपना बनाना चाहिए।पड़ोसी ही काम आते हैं या आयेंगे।कभी कभार अपने पर आक्रमण ही तो करते हैं वे। हमारे सिपाही मजबूत हैं।कुछ इसी बहाने गोलोक धाम ही तो जाते हैं!उनके परिजन को लाखों रूपये तो सरकार देती ही है।वैक्सीन देना सरकार की बहुत बड़ी उपलब्धि है।तारीफे काबिल!पड़ोसी की सहायता करनी चाहिये थी!अपनों को क्या आज न तो कल मिलेगा ही। जो जीवित रहेंगे उन्हें आज न कल मिलेगी ही। परायों के लिए कुछ बलि ही चढ़ गये तो क्या हुआ? वसुधैव कुटुम्बकम्! जनसंख्या वृद्धि भी तो बहुत है। कुछ आंकड़े कम हो गये तो क्या हुआ। इन्द्र राज्य तो स्थापित हो रहा है। अमरत्व तो हो रहा है। इतिहास में नाम अंकित तो हो रहा है। रक्तबीज की तरह शिव के कहने पर काली आयेंगी कोरोना का संहार करने के लिए धरा पर।
तब तक मजा कीजिये! नहीं मजा करना है? तो मौन रहिये। अधिक चूं चपड़ करेंगे तो इन्द्र के चमचे गाली गलौज करेंगे। अपनी बेइज्जति नहीं करवानी हो तो मुख पर अंगुली रख कर मौन रहना ही श्रेयस्कर है!
🤬🙏🏻