Tuesday, 19 January 2021

दिल सा कोई कमीना नहीं



कैसे हो? मौसम सर्द है तो उम्मीद करता हूँ आप सब गुलाबी ही होंगे।दिल और दिमाग का आपसी ताल मेल ना है ना कभी होगा, क्या चाहिए क्या करना है? कौन सा रास्ता सही है? इसमें हमेशा ही दिल और दिमाग बेहस करते हैं और इस बहस में मरते हैं हम यानी इंसान।घुटते हैं हम तड़पते हैं हम....

वैसे scientificly ये prove हो चुका है की सोचने समझने का काम हमारा brain करता है पर लोगों ने दिमाग और दिल की category बनाई जो अपनी जगह बिलकुल सही है। हम जो कुछ महसूस करते हैं हमारी हंसी हमारा दर्द हमारी उलझने दिल से जुडी होती है और हमारे मज़बूत फैसले, mature decisions दिमाग की देन होते हैं। मतलब जो बेसाख्ता हो वो दिल और जो चालाक हो वो दिमाग। यानी हमारे अन्दर ही दो शख्स। 


दिल ओ दिमाग की जंग में पल पल मरते हैं,
अब तो खुद ही से डरते हैं खुद ही से लड़ते हैं
ख्वाहिशें अब करते नहीं हम,
जो की थी हसरतें उन्ही से डरते हैं
खुद कलामी कर लिया करते थे हम,
अब तो हाल ये हैं आईने से डरते हैं
ना पूछो मेरी शरारतें मेरी शोखी कहाँ गयी,
सच कहें तो अब हम कहकहों से डरते हैं। 

दिल हमेशा ऐसे रास्ते पर चलने को कहता है जो खतरनाक होता है, रिस्की होता है और दिमाग हमेशा सुरक्षित रास्तों की तलाश में रहता है, इसी उधेड़ बुन को दिल और दिमाग की जंग कहा जाता है। मतलब फैसला कोई भी हो बेबस इंसान ही होगा। क्यूकि दिल सा वाकई कोई कमीना नहीं...

तुम्हारा राष्ट्र

सुनो ऐ हुक्मरानों, 
मुझे नहीं चाहिये तुम्हारा देश,
तुम्हारा राष्ट्र 


और ये तुम्हारा राष्ट्रवाद 
जहाँ चलती हो गोलियाँ, बहता हो लहू 
पहचाना जाता हो आदमी 
दाढ़ी, टोपी, तिलक और जातियों से
जहाँ जलाई जाती हो औरते 
और बनाई जाती हो जाति और धर्म की मर्यादा 
औरतों की जलती हुई चिता पर बना दिये जाते है धर्म के मंदिर 
मुझे नही चाहिये ऐसा देश
मुझे तो थोड़ी सी जमीन चाहिये
जहाँ ऊगा सकू थोड़ा सा अन्न
थोड़ी सी सब्जियां पेट भरने को
मेरा, तुम्हारा, उनका सबका पेट भर सके जो भूखे है
मुझे बंदूक नही बोना है, ना ही बारूद, क्योंकि इनसे पेट नही भरता।

#FarmersProtest