Saturday, 4 August 2018

बागेश्वर कुंवारी गांव के ग्रामीणों के लिए आफत बनी बारिश l

बागेश्वर जिले में लगातार हो रही बारिश से जहां आम जनजीवन पूरी तहर से प्रभावित है। वहीं भूस्खलन से पूरी तहर प्रभावित कुंवारी गांव के लिए बारिश आफत बन कर टूटी है। सड़कें बंद होने के चलते गांव का संपर्क जिला मुख्यालय से पूरी तरह टूट चुका है। आज़ादी के इतने सालों बाद भी जहाँ सरकारें बड़े - बड़े दावे करती नज़र आती है, पर हालत कुछ और ही बायाँ करती नज़र आई जब आज के समय में भी कुंवारी गांव में एक गर्भवती महिला को ग्रामीण पैदल लकडी के स्टेचर पर 22 किलोमीटर दूर चमोली जनपद के थराली स्वास्थ्य केंद्र में ले जाने को मजबूर है ।इस दौरान महिला की जानपर बन आई थी।






वही पर्व विधायक ललित फ़र्स्वाण ने सरकार व क्षेत्रीय विधायक को आड़े हाथो लेते हुये कहा कि सरकार के आपदा की तैयारियों की पोल खुलती नजर आ है, कि कैसी तैयारियाँ शासन स्तर पर की गयी थी । वो सब धरातल पर नज़र आने लगा है ।



मौसम विभाग के अलर्ट के बाद जिले में लगातार बारिश हो रही है। बागेश्वर जिले का दूरस्थ गांव कुंवारी उच्च हिमालयी क्षेत्र में बसा है। इस गांव के पूर्व में भूस्खलन में आने के चलते सरकार द्वारा पूरे गांव का विस्थापन करने के बात कही गई थी। लेकिन लम्बा समय बीत जाने के बाद भी प्रशासन अब तक विस्थापन की व्यवस्था नहीं कर पाए हैं। प्रशासन की लापरवाही के चलते ग्रामीण दहशत में जिन्दगी विताने को मजबूर हैं।  ग्रामीण सड़क, पानी तथा स्वास्थ्य जैसी मूलभूत सुविधाओं से वंचित हो गए हैं। वहीं कुंवारी गांव के 106 परिवार भूस्खलन की जद में हैं। अभी तक प्रशासन पूरे गांव का विस्थापन नहीं करा पाया वहीं प्रशासन की भारी लापरवाही के चलते कुंवारी गांव की एक 22 वर्षीय गर्भवती महिला अनीता देवी को ग्रामीणों द्वारा लकड़ी का स्टेचरा बना कर 22 किलोमीटर दूर थराली विधानसभा के देवाल अस्पताल पहुंचाया गया। तब जा कर महिला की जान बच पाई। गनीमत रही कि समय रहते ग्रामीण उसे अस्पताल पहुंचा पाए। अस्पताल में महिला का सुरक्षित प्रसव हुआ और जच्चा-बच्चा की जान बच पाई। वहीं गांव में अभी 6 अन्य गर्भवती महिलाएं हैं। लेकिन गांव में स्वास्थ्य से जुड़ी सुविधाएं मौजूद नहीं हैं। जिसके चलते गर्भवती महिलाओं की जान जोखिम में है। लेकिन प्रशासन इसके लिए अभी तक गम्भीर नहीं है। जब्कि स्वास्थ्य विभाग आपदा ग्रस्त क्षेत्र कुंवारी गांव की महिलाओं को कपकोट अस्पताल लाने को दावा करता  रहा है। ग्राम प्रधान किशन सिंह दानू ने बताया कि जिला प्रशासन ग्रामीण की अनदेखी कर रहा है। अभी तक ना ही प्रशासन द्वारा आपदा प्रभावित परिवारों का विस्थापन किया गया है और ना ही स्वास्थ्य, खाद्यान्न जैसी मूलभूत सुविधाओं को उपलब्ध नहीं करा पाया है। प्रशासन की अनदेखी से ग्रामीणों में भारी रोष है। वहीं पूर्व विधायक ललित फर्स्वाण के साथ ग्रामीणों का दल जिलाधिकारी से मिला। ग्रामीणों ने गांव की समस्याओं से उनको अवगत कराया। पूर्व विधायक ने बताया कि लगातार हो रहे भूस्खलन से ग्रामीण डर के साए में जीने को मजबूर हैं। गर्भवती महिलाओं के साथ प्रशासन की अनदेखी को बिलकुल भी बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। उन्होंने कहा कि जल्द से जल्द ग्रामीणों को सुरक्षित स्थान पर विस्थापति किया जाए साथ ही गांव में स्वास्थ्य और खाद्यान्न जैसी मूलभूत सुविधाएं मुहैया कराई जाएं।




आपदा ग्रस्त गांवों के विस्थापन और महिलाओं के स्वास्थ्य को लेकर सरकार भले ही लाख दावे कर ले लेकिन कुंवारी जैसे गांव सरकार के दावों की पोल खोलने के लिए काफी है। शासन-प्रशासन की लापरवाही के चलते कुंवारी गांव में कभी भी माल्पा और ला-झेकला जैसा हादसा होने की सम्भावना है।

एक पुल न बनने से पिंडारी ग्लेशियर नहीं जा पा रहे हैं पर्यटक l

बागेश्वर जिले के पिंडर घाटी में वर्ष 2013 में आई आपदा के बाद से आज तक भी ग्लेशियरों के रास्ते नहीं सुधर सके हैं। ग्लेशियरों के रास्तों में पुलों का काम जहां काफी धीमी गति से चल रहा है वहीं रास्तों की दशा भी ठीक नहीं हुवी है। पिंडारी ग्लेशियर से एक पढ़ाव पहले द्वाली के पास अभी तक पुल नही बन सका है। जिसके चलते देशी—विदेशी पर्यटकों को निराश होकर आधे रास्ते से ही वापस लौटना पड़ रहा है। 


पिंडारी ग्लेशियर को देखने की चाहत से यूक्रेन से तेरह सदस्यों का एक दल यहां आया। इस दल ने हिमालया टूर आउटडोर एडवेंचर से जुड़े हिमांशु पांडे से संपर्क किया। बीते दिनों यह दल बागेश्वर से खर्किया होते हुए अंतिम गांव खाती पहुंचा। खाती से द्वाली को जब यह दल रवाना हुवा तो इन्हें टूटे रास्तों की वजह से काफी परेशानी का सामना करना पड़ा। द्वाली के पास पिंडर और कफनी नदी में बने पैदल पुलों के बह जाने से दल को वापस लौटना पड़ा। वर्ष 2013 की आपदा में यहां द्वाली के पास बह गया पुल आज तक भी नहीं बन सका है। 




हांलाकि यूक्रेन के दल के सदस्यों को पिंडारी ग्लेशियर न देख पाने का मलाल तो है लेकिन वो यहां की खूबसूरत हंसीन वादियों से बहुत खुश हैं। इस दल ने खाती गांव के शीर्ष में पंखुवा बुग्याल के साथ ही धाकुड़ी के उप्पर चिल्ठा मंदिर का ट्रेक कर प्रकृति का आंनद उठाया। 




गौरतलब है कि 2013 की आपदा में पिंडर घाटी में काफी नुकसान पहुंचा था। पिंडर नदी में बने सभी पुल बाढ़ में बह गए थे। वर्तमान में तीख, रिटिंग, लेहबगड़ में पुल बन गए हैं लेकिन द्वाली में पुल अभी तक नहीं बन सका है। यहां पर कफनी और पिंडर नदी में पैदल कच्चे पुल बनाकर आना—जाना होता है। यह पैदल कच्चे पुल भी इस बार की बरसात में बह गए हैं। जिससे पर्यटक ग्लेशियरों के दीदार नहीं कर पा रहे हैं।