Friday, 18 June 2021

गंगोत्री गर्ब्याल, सीमान्त से निकली पहली ग्रेजुएट महिला


तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी के साथ गंगोत्री गर्ब्याल

उत्तराखण्ड की अथक समाजसेवी महिला, सीमांत प्रांतर पिथौरागढ़ के धारचूला में साढ़े दस हजार फीट की ऊंचाई पर बसे गर्ब्यांग गांव की गंगोत्री गर्ब्याल शिक्षा के क्षेत्र में अपनी विशिष्ट सेवाओं के कारण १९६४ में राष्ट्रपति डा० सर्वपल्ली राधाकृष्णन द्वारा राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित हुई। जिसका श्रेय उन्होंने जनभावना को ही दिया था। इनका जन्म ९ दिसम्बर, १९१८ में हुआ था, गंगोत्री जी शैक्षिक संस्थाओं से जुड़ी रही, शिक्षा जगत और समाजसेवा में गंगोत्री जी की सेवायें अनुकरणीय हैं। इनका सम्पूर्ण जीवन शिक्षा के क्षेत्र में समर्पित होकर कार्य करते हुये व्यतीत हुआ। सेवानिवृत्ति से मृत्यु तक वे कैलाश नारायण आश्रम, पिथौरागढ़ में अवैतनिक व्यवस्थापक के रुप में सेवारत रहीं। गंगोत्री जी बाल्यकाल से ही कुशाग्र बुद्धि की अति मेधावी छात्रा थी, उन्होंने १९३१ में वर्नाक्यूलर लोअर मिडिल उत्तीर्ण कर लिया था। उस समय ओई०टी०सी० उत्तीर्ण को ग्रामीण पाठशाला में नौकरी मिल जाती थी। मिस ई. विलियम्स, तत्कालीन सर्वप्रथम बालिका मुख्य निरीक्षका थीं, पर्वतीय क्षेत्रों की महिलाओं को उन्होंने शिक्षा के प्रति प्रोत्साहित करने में बड़ी रुचि दिखाई, वे एंग्लो इंडियन थीं। सीमान्त क्षेत्रों से आई छात्राओं का वह विशेष ध्यान रखती थीं,उन्होंने ही छात्रावास की तत्कालीन संरक्षिका रंदा दीदी से कहा कि गंगोत्री को हाईस्कूल में प्रवेश दिलायें, छात्रवृत्ति मैं दूंगी। यदि विवाह हो भी जाये तो भी आगे पढने में क्या आपत्ति हो सकती है।
१९३५ में तीन दिन की बीमारी के पश्चात गांव में इनके मंगेतर की मृत्यु हो गई, तब गंगोत्री जी एडम्स हाई स्कूल में पढ़ रही थीं। बालमन दुःखी हुआ, १९३७ में गंगोत्री जी को श्री नारायण स्वामी के सत्संग व सानिध्य का अवसर मिला। इन्होंने  नारायण स्वामी से दीक्षा ले ली और गुरुमंत्र को जीवन का पथ माना।


श्री श्री नारायण स्वामी जी


इसी दौरान बरेली में इन्होंने ई०टी०सी० (इंग्लिश टीचर सर्टिफिकेट) में प्रवेश लिया। ई.टी.सी. उत्तीर्ण करने के बाद १९३९ में गंगोत्री जी की नियुक्ति सी०टी० ग्रेड में राजकीय कन्या हाईस्कूल, बरेली में हुई। पूरे प्रदेश में यही प्रथम हाईस्कूल था, यहां पर मिसेज एलाय प्रधानाचार्य थीं, कुछ वर्ष बाद यह इंटर कालेज हो गया। छुट्टियों में कभी ये अल्मोड़ा रंदा दीदी के पास तथा कभी मां आनन्दमयी के आश्रम देहरादून जाया करती थीं। उन्होंने इण्टर की परीक्षा निजी रुप से पास की और इसी तरह बी०ए० तथा एम०ए० भी पास किया। अध्ययनावकाश लेकर राजकीय महिला प्रशिक्षण महाविद्यालय प्रयाग से एल०टी० किया। १९४५ में राजकीय कन्या हाईस्कूल, अल्मोड़ा खुला तो यह अल्मोड़ा आ गई। पुनः रंदा दीदी के संरक्षण में रहीं। गर्मियों की छुट्टियों में शांति निकेतन से घर आई जयंती पांडे, जयंती पन्त, गौरा पाण्डे (शिवानी जी) के सानिध्य में भी रहीं।

जब समाज सेवा की धुन लगी तो गंगोत्री जी १९४८ में अस्कोट क्षेत्र से जिला परिषर, अल्मोड़ा की निर्विरोध सदस्य चुनी गई। अब वे शिक्षण कार्यों के अतिरिक्त सामाजिक कार्यों में भी रुचि लेने लगीं, लोगों की समस्यायें हल करने लगी, वे जिला परिषद, अल्मोड़ा की उपाध्यक्ष भी रहीं।

वे ग्राम पाठशालाओं का निरीक्षण कर समस्या समाधान के लिये सदैव प्रयत्नशील रहीं। स्त्री शिक्षा विरोधी रुढिवादियों को अब स्त्री शिक्षा का महत्व समझ में आने लगा, वे कन्याओं का स्कूल भेजने लगे। गंगोत्री जी मद्य निषेध पर भी बोलती थीं, अल्मोड़ा में १९४६ से १९५२ तक महिला नार्मल स्कूल में कार्यरत रहकर वे विभिन्न समाज सेवी संस्थाओं से जुड़ी रहीं। १९४९-५० में चीन ने तिब्बत पर कब्जा किया, चीनी तिब्बतियों पर आधिपत्य जमाने लगे और तिब्बती जनता को अपने ढांचे में ढालने हेतु स्कूल, अस्पताल आदि की सुविधा देने लगे। सीमान्त के भारतीय व्यापारियों पर भी चीनियों का अंकुश बढ़ने लगा, अतः सीमान्तवासियों को अपनी सुरक्षा की चिंता होने लगी। तब उन्होंने २४ फरवरी से २६ फरवरी, १९५१ में रामनगर, जिला नैनीताल में एक विराट सम्मेलन का आयोजन किया। इस हिमालय प्रांतीय सम्मेलन में लाहौल, कुल्लू-कांगड़ा, गढ़वाल, कुमाऊं के जनप्रतिनिधि सम्म्लित थे, तत्कालीन सांसद देवीदत्त पन्त तथा विधायक हर गोबिन्द पन्त भी आमंत्रित थे, व्यापारियो एवं जनता का बड़ा सराहनीय सहयोग भोजन तथा व्यवस्था के लिये था। प्रतिनिधियों और नागरिकों ने बहुत बड़ा जुलूस निकालकर सम्मेलन का प्रारम्भ किया। ’सीमान्त को बचाओ’ ’सुरक्षा की व्यवस्था हो’ ’व्यापार बचाओ’ ’सीमान्त का विकास करो’ आदि जोशीले नारे लगाये गये, स्वागताध्यक्ष कार्य गंगोत्री जी के सुपुर्द था। आगंतुक, जनप्रतिनिधियों एवं उपस्थित जनसमूह का स्वागत करते हुये सीमान्त सम्मेलन के उद्देश्यों पर उन्होंने प्रकाश डाला। तत्कालीन समस्त समस्याओं को लेकर उनकी मांगों को पूरा करवाने के लिये एक समिति का गठन किया ग्या, जिसका नाम हिमालय सीमान्त संघ रखा गया। गंगोत्री गर्ब्याल कार्यकारिणी के सात सदस्यों में एक मात्र महिला सदस्य थीं, तब यह भी निश्चय किया गया कि संघ का एक शिष्टमंडल अपनी मांगों को लेकर प्रधानमंत्री के पास दिल्ली जायेगा।


नारायण आश्रम


गंगोत्री गर्ब्याल दारमा, से शिष्टमंडल की सदस्य थीं, अपने कार्यकाल में गंगोत्री जी ने स्त्री शिक्षा के प्रचार और प्रसार के लिये समर्पित भाव से कार्य किया। जब अल्मोड़ा में छात्रावास न था, तब इन्होंने सीमान्त क्षेत्रों से आने वाली समस्त छात्राओं को अपने पास रखा और शिक्षित किया। परिवार की तरह एक ही रसोई होती थी, कुछ छात्रायें कुछ महीनों से लेकर १५ वर्ष तक इनके साथ रहीं, एक जाती, दूसरी आती, यही क्रम चलता रहा।

सीमान्त पर तैनात जवानों के लिये उन्होंने सेना सेवा समिति का गठन किया, वे हाथ से बने गरम कपड़े और डिब्बा बन्द भोजन फौजी भाइयों के लिये भेजती। जिलाधिकारी के संरक्षण में इन सब कार्यों में उत्साहपूर्वक भाग लेने वाली वहां की कुछ अन्य शिक्षिकायें माया खर्कवाल, जानकी जोशी, विभा मासीवाल तथा सुशीला उप्रेती भी थीं। राजकीय इन्टर कालेज में नियुक्त सुश्री गंगोत्री १९६१ में लोक सेवा आयोग द्वारा चयनित होकर प्रधानाध्यापिका के पद पर उत्तरकाशी गई। तब कक्षा दस में मात्र दो छात्रायें थीं, गंगोत्री जी के सतत प्रयास से उनमें वृद्धि होती चली गई। १९६२ में चीन आक्रमण के समय राष्ट्रीय सुरक्षा कोष  में धन संचय हेतु गंगोत्री जी की पहल और प्रेरणा से छात्राओं ने एक सांस्कृतिक कार्यक्रम तैयार कर मकर संक्रान्ति के पर्व पर प्रस्तुत किया तथा उस कार्यक्रम से २००० रुपये की राशि एकत्र कर राष्ट्रीय सुरक्षा कोष में दी, इससे तत्कालीन मुख्यमंत्री सुचेता कृपलानी बहुत प्रसन्न हुईं। गंगोत्री जी सेवानिवृत्ति के बाद भी उसी गति और भावना से समाज सेवा में संलग्न रहीं। दिनांक २० अगस्त, १९९९ को इनका देहावसान हो गया। इनकी स्त्री शिक्षा को बढ़ावा देने की भावना को अक्षुण्ण रखने के लिये जनपद पिथौरागढ़ के राजकीय बालिका इण्टर कालेज का नाम गंगोत्री गर्ब्याल राजकीय बालिका इण्टर कालेज रखा गया है। सीमान्त से निकली पहली ग्रेजुएट महिला का गौरव भी गंगोत्री गर्ब्याल के ही नाम है।

[धार द्वारा प्रकाशित 'ग्रंथ आयोजन: एक' से साभार]

Thursday, 10 June 2021

PM मोदी को दाढ़ी बनाने के लिए 100 रुपए का मनी ऑर्डर भेजा एक चायवाले ने



“कोरोना और लॉकडाउन की वजह से लोगों का काम ठप हो गया है और इससे दुखी अनिल मोरे ने कहा है कि पीएम मोदी को कुछ बढ़ाना ही है तो देश में लोगों के लिए रोजगार के अवसर बढ़ाने चाहिए।“

प्रधानमंत्री के मन की बात व देश के नाम सम्बोधन के बाद एक चयवाले ने उनके मन की बात को समझते हुये अपने मन की बात पत्र और मनी ऑर्डर के माध्यम से व्यक्त की है। आपको बताते चलें कि महाराष्ट्र के बारामती निवासी एक चायवाले ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को 100 रुपए का मनी ऑर्डर भेजा है और इस पैसे से अपनी बड़ी हुई दाढ़ी बनाने के लिए कहा है। पीएम मोदी को दाढ़ी बनाने के लिए 100 रुपए का मनी ऑर्डर भेजने वाले इस चाय विक्रेता का नाम है अनिल मोरे। कोरोना और लॉकडाउन की वजह से लोगों का काम ठप हो गया है और इससे दुखी अनिल मोरे ने कहा है कि पीएम मोदी को कुछ बढ़ाना ही है तो देश में लोगों के लिए रोजगार के अवसर बढ़ाने चाहिए। 


महाराष्ट्र के लोकल मराठी मीडिया 'लोकमत' की रिपोर्ट के हवाले से न्यू इंडियन एक्सप्रेस ने लिखा कि इंदारपुर रोड पर स्थित एक प्राइवेट अस्पताल के विपरित चाय की दुकान लगाने वाले अनिल मोरे कहते हैं, 'पीएम मोदी ने दाढ़ी बढ़ा ली है। अगर उन्हें कुछ बढ़ाना चाहिए, तो वह इस देश के लोगों के लिए रोजगार के अवसर होने चाहिए। आबादी के लिए टीकाकरण में तेजी लाने के प्रयास किए जाने चाहिए और मौजूदा चिकित्सा सुविधाओं को बढ़ाने के प्रयास होने चाहिए। पीएम को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि लोग अपने दुखों से छुटकारा पाएं जो पिछले दो लॉकडाउन के कारण हुए हैं। 
इसके अलावा, उन्होंने दावा किया कि प्रधानमंत्री का पद देश में सर्वोच्च है। उन्होंने कहा, 'मेरे मन में हमारे प्रधानमंत्री के लिए अत्यंत सम्मान और आदर है। मैं उन्हें अपनी बचत में से 100 रुपये भेज रहा हूं ताकि वह अपनी दाढ़ी मुंडवा लें। वह सर्वोच्च नेता हैं और मेरा उन्हें चोट पहुंचाने का कोई इरादा नहीं है। लेकिन जिस तरह से महामारी के कारण गरीबों की समस्या दिन पर दिन बढ़ती जा रही है, यह उनका ध्यान आकर्षित करने का एक तरीका है।'

पीएम को लिखे पत्र में मोरे ने अपने मनी ऑर्डर के साथ एक पत्र भेजा है। उन्होंने कोरोना से जान गंवाने वाले हर शख्स के परिवार को पांच लाख रुपए की मदद देने और आगे लॉकडाउन बढ़ने पर हर परिवार को 30 हजार रुपए की मदद देने की भी मांग की है। बता दें कि पिछले डेढ़ सालों में कोरोना वायरस और लॉकडाउन की वजह से असंगठित क्षेत्र को काफी नुकसान हुआ है। जिसकी सबसे अधिक मार निम्न आय वर्ग, मध्यम आय वर्ग व मजदूर को पड़ी है, जिनका रोजगार छिन चुका है। 


राजकुमार सिंह
rajkumarsinghbgr@gmail.com

मास्क कितना जरूरी इसका फैसला होगा 15 जून को





भारत मे एक आरटीआई आवेदन में कोविड महामारी के दौरान मास्क के प्रभाव से संबंधित जानकारी मांगी गई थी, जिस पर स्वास्थ्य मंत्रालय ने कोई जवाब नहीं दिया। केंद्रीय सूचना आयोग ने इस आवेदन को व्यापक जनहित वाला बताते हुए कहा कि मंत्रालय के अधिकारियों ने इसे एक से दूसरी जगह सिर्फ ट्रांसफर करके पोस्ट ऑफिस वाला काम किया है। मास्क संबंधी आरटीआई पर जानकारी न देने पर सीआईसी ने लगाई फटकार, कहा- घोर लापरवाही है।


पूरे देश वासी पिछले लॉकडाऊन से सुनते आ रहे हैं कि कोरोना से बचाव के लिए आम इंसान को मास्क पहनना अनिवार्य है जिसके लिए आम जन पर जुर्माना भी लगाया जा रहा है। परन्तु इस पर उस वक्त चौकाने वाला वाक्या सामने आया है जब इस विषय पर एक आरटीआई कार्यकर्ता ने आरटीआई लगाई। आपको जाकर हैरानी होगी जब देश कि राजधानी नई दिल्ली मे केंद्रीय सूचना आयोग (सीआईसी) ने कोरोना महामारी में मास्क के इस्तेमाल से संबंधित एक सूचना का अधिकार (आरटीआई) आवेदन पर जवाब न देने और इसे एक विभाग से दूसरे विभाग में ट्रांसफर करते रहने के लिए केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय को कड़ी फटकार लगाई है। आयोग ने मंत्रालय के आरटीआई सेल के अधिकारियों पर गहरी नाराजगी जताते हुए कहा कि उन्होंने अपनी जिम्मेदारियों को निभाने में घोर लापरवाही बरती है। 

26 मई 2020 को मैथ्यू थॉमस नामक एक व्यक्ति ने एक आरटीआई आवेदन दायर कर कोरोना महामारी के संदर्भ में पूछा था कि किस आधार पर पूरे भारत के लोगों के लिए मास्क अनिवार्य करने का निर्णय लिया गया है।  उन्होंने इस संबंध में स्वास्थ्य विशेषज्ञों द्वारा दिए गए सलाह, ऐसे दस्तावेज या मिनट्स ऑफ मीटिंग जो ये दर्शाते हो कि मास्क को लेकर विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा दिए गए सुझावों पर विचार किया गया था, ऐसा कोई दस्तावेज या बैठक का मिनट्स जो ये दर्शाता हो कि केवल मेडिकल मास्क से सार्वजनिक स्थानों पर लोगों की रक्षा हो सकती है और इसकी जगह पर स्कार्फ या रूमाल से बचाव नहीं होगा बल्कि संक्रमण का खतरा भी होगा, इत्यादि की प्रति भी थॉमस द्वारा मांगी गयी थी। 

“थॉमस ने मंत्रालय से यह भी पूछा था कि ये निर्णय लेते वक्त क्या इस बिंदु पर विचार किया था कि भारत की आबादी के करीब 40 करोड़ गरीब लोग कैसे मेडिकल मास्क खरीद पाएंगे ?”

हालांकि स्वास्थ्य मंत्रालय से कोई जवाब नहीं मिलने पर आवेदनकर्ता ने तीन सिंतबर 2020 को प्रथम अपील दायर की, लेकिन यहां से भी कोई उत्तर न मिलने पर उन्हें सीआईसी का रुख करना पड़ा। बीते 25 मई 2021 को आयोग में हुई सुनवाई के दौरान मंत्रालय के विभिन्न अधिकारियों ने दलील दी कि चूंकि ये जानकारी उनके पास नहीं थी, इसलिए उन्हें अन्य विभाग को ट्रांसफर करना पड़ा था। जिसमे थोड़ा समय लग गया जानकारी आने तक। 
इसे लेकर मुख्य सूचना आयुक्त वाईके सिन्हा ने कहा कि आरटीआई आवेदन को ‘बहुत लापरवाही’ के साथ डील गया है और ‘अधिकारी इसे एक विभाग से दूसरे विभाग में ट्रांसफर ही करते रह गए’ और आवेदनकर्ता को पूरी जानकारी नहीं दी गई। उन्होंने कहा, ‘अपीलकर्ता द्वारा आरटीआई आवेदन में व्यापक जनहित से संबंधित बहुत प्रासंगिक मुद्दे उठाए गए हैं।’
सिन्हा ने अपने आदेश में आयोग स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण के आरटीआई सेल के अधिकारियों की कार्यप्रणाली पर गहरी नाराजगी व्यक्त करतें हुए कहा है कि, जिन्होंने आरटीआई आवेदन को सिर्फ एक विभाग से दूसरे विभाग में ट्रांसफर करने के लिए पोस्ट ऑफिस की तरह काम किया है। उन्होंने कहा कि आरटीआई आवेदन को ट्रांसफर करने पर यह नहीं कहा जा सकता है कि ट्रांसफर करने वाला अधिकारी, सीपीआईओ के रूप में अपने कर्तव्यों और जिम्मेदारियों से पूरी तरह से मुक्त हो चुका है। 
मामले की सुनवाई के दौरान आवेदनकर्ता मैथ्यू थॉमस ने कहा कि अभी भी स्वास्थ्य मंत्रालय की वेबसाइट पर ये लिखा है कि ‘जिन लोगों को कोरोना के लक्षण नहीं है वे मास्क न पहनें और मेडिकल मास्क की जगह पर स्कार्फ एवं रुमाल नहीं लगाया जाना चाहिए क्योंकि ये हानिकारक साबित हो सकता है।’

थॉमस ने मांग की कि स्वास्थ्य मंत्रालय व्यापक जनहित से जुड़ी जानकारी स्वत: अपने वेबसाइट पर निरंतर प्रकाशित करे। इस पर सहमति जताते हुए वाइके सिन्हा ने कहा कि ‘आरटीआई अधिनियम, 2005 की धारा 4(1) (सी) और (डी) के अनुसार सार्वजनिक पटल पर सही और सटीक जानकारी प्रकाशिक की जानी चाहिए ताकि लोगों को आरटीआई आवेदन दायर करने की जरूरत न पड़े।’

आयोग ने कहा कि स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय की वेबसाइट पर कोविड-19 के प्रसार को रोकने के लिए कई मानक संचालन प्रक्रियाएं (एसओपी) हैं, लेकिन इसमें कहीं भी विभिन्न प्रकार के मास्क की उपयोगिता और इनके लाभ के बारे में स्पष्ट जानकारी नहीं है। 
इस प्रकार सिन्हा ने स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के नोडल सीपीआईओ को अपीलकर्ता द्वारा उठाए गए बिंदुओं पर उपलब्ध सही और सटीक जानकारी प्रदान करने का निर्देश दिया।  उन्होंने कहा कि अधिकारी द्वारा संबंधित पीआईओ से जानकारी प्राप्त की जानी चाहिए और फिर इसे मंत्रालय की वेबसाइट पर स्वतः ही प्रकाशित किया जाए। आयोग ने अपील का निस्तारण करते हुए 15 जून तक अपने आदेश का अनुपालन करने का भी निर्देश दिया।
जरा सोचिए बिना जानकारी के कैसा नियम ? बिना शासनादेश के कैसे लागू ? जब शासनादेश कि ही जानकारी नहीं तो जुर्माना किस आधार पर लगाया जा रहा है ? टीवी पर लम्बे-लम्बे भाषणों के साथ मास्क पहनने की अपील कितनी सही होगी? आखिर क्यों देश कि भोली जनता को डर के माहौल मे जीने को मजबूर किया जा रहा है? 
सरकार महज दावों के सहारे यह दिखाने की कोशिश में लगी है कि वह कोरोना के खिलाफ कारगर लड़ाई लड़ रही है। जबकि जमीनी हकीकत कुछ और ही बयां करती नजर आ रही है। इससे अधिक विडम्बना हम भारतीयों के लिए और क्या हो सकती है। देश के किसी भी मेन स्ट्रीम कि मीडिया मे आपको यह खबर नजर नहीं आयेगी। क्योंकि यह सरकार की नाकामियों को उजागर करती है। गौरव विवेक भटनागर की इस खबर को विस्तृत तरीके से  आपके सम्मुख प्रस्तुत किया गया है ...





राजकुमार सिंह
rajkumarsinghbgr@gmail.com